कुछ दिन पहले मैंने अपने एक मित्र से पूछा कि ‘तग़मा’ सही है या ‘तमग़ा’ तो वह भी कुछ समय के लिए चकरा गया। मित्र ने कुछ देर सोचकर कहा, ‘तग़मा’ ही सही लगता है। उसका जवाब सही था या नहीं, यह हम आज की चर्चा में जानेंगे और यह भी जानेंगे कि आख़िर इस शब्द के बारे में इतना कन्फ़्यूश्ज़न क्यों है?
‘तग़मा’ और ‘तमग़ा’ पर सवाल पूछने का ख़्याल मुझे तब आया जब मैंने हाल ही में एक पाकिस्तानी सीरियल के पात्र को ‘तग़मा’ बोलते सुना जबकि मेरे हिसाब से ‘तमग़ा’ होना चाहिए। इससे मुझे यही लगा कि कई लोग ‘तग़मा’ भी बोलते हैं। इसी के साथ जब हिंदी के एक नहीं, दो नहीं, तीन-तीन शब्दकोशों में ‘तग़मा’ की एंट्री देखें तो उससे मेरी यह धारणा पुख़्ता हुई। यह ज़रूर है कि उन सभी एंट्रीज़ में लिखा था – देखें ‘तमग़ा’। यानी इशारा मूल शब्द ‘तमग़ा’ की ओर किया गया था। लेकिन कोशों में ‘तग़मा’ की प्रविष्टि ज़ाहिर करती है कि कोशकारों के मुताबिक़ ‘तग़मा’ भी हिंदी समाज में प्रचलित है/था।
अब प्रश्न यह कि ‘तमग़ा’ से ‘तग़मा’ कैसे बना होगा? क्या नग़मा की देखादेखी? या इसलिए कि ‘तमग़ा’ के मुक़ाबले ‘तग़मा’ बोलना आसान है? पता नहीं। वैसे देखें तो ‘तमग़ा’ और ‘तग़मा’ में एक ही ध्वनि का उलटफेर है (त+म+ग़ा>त+ग़+मा) और ऐसे उलटफेर के उदाहरण हर भाषा में मिलते हैं। हिंदी में इस प्रक्रिया को वर्ण विपर्यय कहते हैं।
वर्ण विपर्यय दो तरह से हो सकता है। एक जिसमें व्यंजन इधर-से-उधर हो जाए जैसा कि तमग़ा और तग़मा में हो रहा है – ‘ग़’ ‘म’ की जगह आ गया और ‘म’ ‘ग़’ की जगह। दूसरा स्वर विपर्यय जिसमें व्यंजन तो अपना स्थान नहीं बदलता लेकिन स्वर अपनी जगह बदल लेता है। जैसे हरिण और हिरण। इसमें ‘र’ पर लगी ‘इ’ की मात्रा ‘ह’ पर आ गई है। वर्ण विपर्यय के कुछ और उदाहरण आप नीचे देखें।
- लखनऊ/नखलऊ
- वाराणसी/बनारस
- ब्राह्मण/ब्राम्हण
- जेनरल/जरनैल
- वबाल/बवाल
- तज्रुबा/तजुर्बा
- जानवर/जनावर
- कुछ/कछु
- अंगुली/उँगली
सिंह को भी संस्कृत के हिंस् का विपर्यय माना जाता है।
अंग्रेज़ी में भी वर्ण विपर्यय (Metathesis) के कई उदाहरण मिलते हैं। एक दिलचस्प उदाहरण है Bird (-ir-) का जो Brid/Bridd (-ri-) से बना है। आज का Thrill (-ri-) भी पुरानी इंग्लिश के Thirl (-ir-) से बना है। Three और Thirty/Thirteen में भी हम विपर्यय के लक्षण देख सकते हैं। Three में स्वर r के बाद (-ree-) है लेकिन Thirty और Thirteen में r से पहले (-ir-)।
ऊपर मैंने वबाल/बवाल और तज्रुबा/तजुर्बा का ज़िक्र किया है। आपको क्या लगता है – मूल शब्द बवाल है या वबाल? तज्रुबा है या तजुर्बा? इसपर हम पहले चर्चा कर चुके हैं। रुचि हो तो ऊपर के हाइपरलिंक शब्दों पर पर क्लिक/टैप करके पढ़ें।
One reply on “189. मुक़ाबला जीतने पर क्या मिलता है – ‘तमग़ा’ या ‘तग़मा’?”
बहुत ज्ञानवर्धक बात की आपने। यह सचमुच एक रोचक विषय है। मुझे एक नई चीज़ “विपर्यय” के बारे में भी जानने को मिला। इसके लिए धन्यवाद।