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79. नाम है गब्बर सिंह, तो क्यों हम बोलें सिंग?

जब मैंने फ़ेसबुक पर सिंह के उच्चारण के बारे में सवाल पूछा तो आधे से ज़्यादा यानी 56% लोगों ने कहा – सिँ+ह (सिँह) जबकि व्याकरण के हिसाब से सबसे शुद्ध उच्चारण है सिङ्+ह (सिंग्ह) जिसके पक्ष में 18% वोट पड़े। लेकिन शुद्ध होने के बावजूद हम हिंदीभाषी सिंग्ह नहीं बोल पाते, बोलते हैं सिंग या सिंघ। क्यों, यह जानने के लिए आगे पढ़ें।

सिंह का सही उच्चारण एक ऐसा मामला है जो किसी शब्दकोश से तय नहीं हो सकता क्योंकि शब्दकोशों में वर्तनी दी हुई होती है, उच्चारण नहीं दिया होता, ख़ासकर हिंदी के शब्दकोशों में तो नहीं ही दिया रहता।

तो अब तय कैसे किया जाए कि सिंह का कौनसा उच्चारण सही है और कौनसा ग़लत। तो इसके तीन पैमाने हैं। एक, यह जिस भाषा से आया है, वहाँ इसका क्या उच्चारण होता है। दो, हिंदी व्याकरण के हिसाब से इसका क्या उच्चारण होना चाहिए। तीन, भाषा विज्ञान के हिसाब से इसका कौनसा उच्चारण संभव है।

1. पहले हम शब्द के मूल पर जाते हैं। सिंह शब्द संस्कृत से आया है और संस्कृत में अनुनासिक ध्वनियाँ जैसे अँ, आँ, इँ, ऊँ, ओँ आदि हैं ही नहीं। इसलिए संस्कृत में सिंह का उच्चारण सिँह (सिँ+ह) हो ही नहीं सकता। इसलिए पहला विकल्प जिसपर 56% लोगों ने वोट किया है, संस्कृत के हिसाब से बिल्कुल ग़लत है क्योंकि सिंह में जो बिंदी लगी है, वह अनुस्वार (म्, न्, ङ् आदि) है न कि अनुनासिक (अँ, आँ आदि)।

2. अगला प्रश्न यही होगा कि संस्कृत में इसका क्या उच्चारण क्या है। वहाँ क्या म् है या न् है या ङ् है? इसके बारे में पक्के तौर पर कुछ भी कहना मुश्किल है। कुछ लोग मानते हैं कि संस्कृत में अनुस्वार का उच्चारण म् जैसा होता है। इस हिसाब से सिंह का उच्चारण हुआ सिम्ह्अ। यही वजह है कि हमारे पूर्व प्रधानमंत्री का नाम नरसिम्हा राव बोला और लिखा जाता था और उनके नाम की अंग्रेज़ी स्पेलिंग भी यही थी – NarSIMHA Rao।

3. लेकिन हिंदी में तो हम सिंह को सिम्ह बोलते नहीं हैं। क्या बोलते हैं, चलिए, आगे जानते हैं।

4. आपको मालूम होगा कि हिंदी में अनुस्वारों का उच्चारण उस वर्ण पर निर्भर नहीं करता जिसपर वह लगा होता है बल्कि उसके अगले वर्ण पर निर्भर करता है। यानी ‘अंक’ में ‘अ’ के ऊपर लगे अनुस्वार का उच्चारण ‘अ’ पर नहीं, ‘क’ पर निर्भर करेगा। नियम यह है कि अनुस्वार लगे वर्ण के बाद का वर्ण जिस वर्ग का है, उस वर्ग की पाँचवीं ध्वनि का उच्चारण वहाँ होगा। जैसे अंक में अगला वर्ण ‘क’ है और कवर्ग की पाँचवीं ध्वनि ‘ङ्’ है, इसलिए यहाँ ‘अ’ पर लगे अनुस्वार का उच्चारण ‘ङ्’ होगा – अङ्क। दूसरा उदाहरण चंदन का लें। यहाँ अनुस्वार ‘च’ पर है लेकिन उसके बाद वाला वर्ण ‘द’ है जो तवर्ग का सदस्य है और तवर्ग की पाँचवीं ध्वनि ‘न’ है, इसलिए यहाँ ‘च’ पर लगे अनुस्वार का उच्चारण ‘न्’ होगा – चन्दन।

5. लेकिन यह नियम तो केवल पाँच वर्गों – कवर्ग, चवर्ग, टवर्ग, तवर्ग और पवर्ग पर लागू होगा जहाँ पाँचवीं ध्वनियाँ हैं। अगर किसी शब्द में अनुस्वार के बाद अगला वर्ण वर्गबाह्य हो यानी इन पाँच वर्गों से बाहर का हो तो क्या होगा? जैसे य, र, ल, व, श, ष, स और ह। चूँकि ये वर्ण किसी वर्ग में शामिल नहीं हैं और उनकी कोई पाँचवीं ध्वनि भी नहीं है, इसलिए ऐसे शब्दों को लेकर समस्या होती है कि वहाँ अनुस्वार का क्या उच्चारण होगा। ऐसे कई शब्द हैं जिनमें से कुछ ये हैं – अंश, संवत्, संवाद, संलग्न, संलिप्त, संयम, संरक्षण, संहिता और सिंह जो कि हमारे पोल का विषय था।

6. इसका एक नियम है जो आप नीचे चार्ट में देखेंगे तो आसानी से समझ जाएँगे। नियम यह है कि य, श के मामले में चवर्ग वाला उच्चारण (ञ्), र, ष के मामले में टवर्ग वाला उच्चारण (ण्), ल, स के मामले में तवर्ग वाला उच्चारण (न्), व के मामले में पवर्ग वाला उच्चारण (म्) और ह के मामले में कवर्ग वाला उच्चारण (ङ्) होगा (देखें चित्र)।

7. इस हिसाब से सिंह का उच्चारण होगा – सिङ्ह (सिंग्ह) जो हमारा दूसरा विकल्प था। हिंदी व्याकरण के हिसाब से यही सबसे सही जवाब है लेकिन इसपर केवल 18% वोट पड़े। कारण, सही होने के बावजूद यह उच्चारण बहुत कठिन है।

8. कठिनाई यह है कि सिङ्ह (सिंग्ह) आप तभी बोल पाएँगे जब आप सायास बोलें। सामान्य बोलचाल में आपके मुँह से कुछ और ही निकलेगा। यदि आपको बोलना है, ‘सिंह साहब, कैसे हैं?’ तो आपके मुँह से ‘सिंग्ह साहब’ निकलेगा ही नहीं। निकलेगा वही जो हमारे तीसरे और चौथे विकल्प थे – यानी ‘सिंग साहब’ या ‘सिंघ साहब’। ऐसा क्यों, यह हम आगे जानते हैं। लेकिन आगे बढ़ने से पहले बता दूँ कि इस तमाम जानकारी का स्रोत मेरे भाषामित्र योगेंद्रनाथ मिश्र हैं। अगर उन्होंने सिंह के उच्चारण से संबंधित ये ज़रूरी बातें मुझे नहीं बताई होतीं तो यह लेख आधा-अधूरा रह जाता और आप जानते ही हैं कि आधा ज्ञान कितना ख़तरनाक होता है।

9. जब हम किसी शब्द का उच्चारण करते हैं तो उसे तोड़कर बोलते हैं जैसे पानी में ‘पा’ और ‘नी’ और रावण में ‘रा’ और ‘वण्’। शब्द को कैसे तोड़ेंगे, यह उसमें मौजूद (उच्चरित) स्वरों की संख्या पर निर्भर करता है। जैसे पानी में पा (आ) और नी (ई), ये दो स्वर हैं और दोनों ही उच्चरित होते हैं, इसलिए यह दो हिस्सों में टूटा। लेकिन रावण में रा (आ), व (अ) और ण (अ), इन तीन स्वरों के होने के बावजूद (हिंदी में) ‘ण’ के साथ लगे ‘अ’ स्वर का उच्चारण नहीं होता, इसलिए यह भी दो हिस्सों में ही टूटेगा – ‘रा’ और ‘वण्’। शब्दों के इन अलग-अलग टुकड़ों को तकनीकी भाषा में अक्षर (सिल्अबल) कहते हैं।

10. ऊपर पॉइंट नंबर 6 और 7 में हमने जाना कि सिंह के मामले में दो अक्षर (सिल्अबल) बनते हैं – ‘सिङ्’ और ‘ह’ जिसके आधार पर इसे सिंग्ह बोला जाना चाहिए लेकिन बोल नहीं पाते। कारण यह कि हम कोई शब्द कैसे बोलते हैं, यह निर्भर करता है स्ट्रेस या बलाघात पर। ध्यान दीजिए, हम किसी शब्द में मौजूद हर स्वर पर बराबर स्ट्रेस या बल नहीं देते। जैसे पानी में ‘आ’ और ‘ई’ दोनों स्वर हैं लेकिन बोलते समय हम ‘पा’ पर ज़्यादा बल देते हैं, ‘नी’ पर कम। रावण के मामले में ‘रा’ पर ज़्यादा बल है, ‘वण्’ पर कम।

11. अब आते हैं सिङ्ह के मामले पर। सिङ्+ह में आप पहले स्वर पर भी बल दे सकते हैं और दूसरे पर भी। जब पहले स्वर ‘सिङ्’ पर बल देते हैं तो अगला स्वर ‘ह’ शिथिल हो जाता है और उसका उच्चारण नहीं होता। आपके मुँह से जो ध्वनि निकलती है, वह होती है सिङ् (सिंग) की। इसके विपरीत अगर आप दूसरे स्वर ‘ह’ पर बल देते हैं तो सिङ् (सिंग) की ग् ध्वनि ‘ह’ से मिलकर ‘घ’ बन जाती है और आपके मुँह से जो शब्द निकलता है, वह होता है सिंघ। रोमन में आप इन दोनों ध्वनियों को SING.(h) और sin.GH के रूप में समझ सकते हैं।

संक्षेप में सिंह के उच्चारण के संबंध में निष्कर्ष यह है।

1. सिंह का सिँह (सिँ+ह) उच्चारण व्याकरण के हिसाब से ग़लत है क्योंकि सिंह में लगी बिंदी में अनुस्वार (ङ्) की ध्वनि है, अनुनासिक (इँ) की नहीं।

2. हिंदी व्याकरण के हिसाब से शुद्ध उच्चारण सिङ्ह है लेकिन स्ट्रेस के कारण हम सिङ्+ह नहीं बोल पाते।

3. सिङ्ह बोलने के प्रयास में हम सिङ् (सिंग) या सिङ्घ (सिंघ) ही बोल पाते हैं जो कि हमारे बोलने के ढंग पर निर्भर करता है कि हम शब्द के किस हिस्से पर ज़्यादा बल देते हैं।

इस पोस्ट में हमने गब्बर सिंह के नाम की बात की। यह नाम शब्द कहाँ से आया – संस्कृत से या फ़ारसी से? यदि संस्कृत से आया तो गुमनाम, बदनाम आदि फ़ारसी शब्दों में ‘नाम’ क्यों है? यदि फ़ारसी से आया तो सर्वनाम, उपनाम जैसे संस्कृत के शब्दों में ‘नाम’ कहाँ से आया? रुचि हो तो पढ़ें।

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5 replies on “79. नाम है गब्बर सिंह, तो क्यों हम बोलें सिंग?”

महोदय !यदि सिंह को सिन्गह बोल रहे हैं अंक को अंगक क्यों नही ? मेरा मतलब ङ की आवाज़ क्या है n या ng ?

नमस्ते। इसमें ज़िंदगी शब्द छुपा हुआ है। अपनी (ज़िंदगी) …. कट जाएगी। और हाँ, शब्द स्त्रीलिंग है इस्त्रीलिंग नहीं। Roman में इसे striling लिखा जाएगा।

तो सरजी सिंह का सही उच्चारण कौन सा है ये तो तय हो? सही उच्चारण क्या सिंग्ह है जिसे हम आमतौर पर सिंघ बोलते हैं या कुछ और? दूसरा क्या प्राचीन हिंदी या संस्कृत भाषा में वन और जंगल के लिए रंद या रिंद नामक कोई शब्द प्रचलित था या नहीं?

नमस्ते। स्पेलिंग के हिसाब से सिंह का सही उच्चारण होगा सिंङ्ह यानी सिंग्ह। संस्कृत या हिंदी में रिंद या रंद जैसा कोई शब्द नहीं है जिसका मतलब जंगल हो। रिंद फ़ारसी का एक शब्द है जिसका मतलब है वह इंसान जो धर्म के मामले में उदार विचार रखता हो।

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