दुनिया और दुनियाँ पर पूछे गए सवाल के जवाब में 71% ने सही विकल्प चुना यानी दुनिया। किसी भी प्रामाणिक शब्दकोश में खोजेंगे, आपको दुनिया ही मिलेगा, दुनियाँ नहीं। लेकिन जिन 29% ने दुनियाँ को सही बताया, वे भी ज़्यादा ग़लत नहीं थे। क्यों, जानने के लिए आगे पढ़ें।
दरअसल जिन्होंने दुनिया को सही बताया, उन्होंने आँखों पर विश्वास करके वोट दिया था यानी उन्होंने अख़बारों, किताबों या साइटों पर दुनिया लिखा देखा था जबकि जिन्होंने दुनियाँ को सही बताया, उन्होंने कानों पर विश्वास करके वोट दिया था क्योंकि उन्होंने हमेशा दुनियाँ ही सुना था।
जी हाँ, लिखते समय तो दुनिया ही लिखा जाता है लेकिन कुछ ज़ुबानी करिश्मा है कि जब बोलते हैं तो दुनियाँ ही मुँह से निकलता है।
जानते हैं इसका कारण? इसका कारण है ‘नि’ में शामिल ‘न’ जो ‘या’ से पहले है। दरिया बोलिए, साफ़ दरिया मुँह से निकलेगा, बिटिया बोलिए, बिटिया ही निकलेगा। लेकिन बनिया बोलिए, धनिया बोलिए, मुँह से जो शब्द निकलेंगे, ऐसा लगेगा जैसे बनियाँ और धनियाँ बोल रहे हैं। ख़ुद बोलकर इन्हें आज़मा लें या फिर नीचे मोहम्मद रफ़ी का गाया यह अमर गीत सुन लें – ओ दुनिया के रखवाले। सुनिए, वे दुनिया बोलते हैं या दुनियाँ!
अब आपमें से कुछ लोग पूछ सकते हैं कि जब हम दुनियाँ बोलते हैं तो वैसा ही लिखते क्यों नहीं हैं! सवाल वाजिब है। लेकिन इसके एक नहीं, दो जवाब हैं। पहला तो यह कि यह शब्द उर्दू के मार्फ़त अरबी से आया है और वहाँ अनुनासिक ध्वनि यानी आँ, ईं का उच्चारण एक ख़ास स्थिति के अलावा कभी नहीं होता। वह ख़ास स्थिति भी तब आती है जब किसी शब्द के अंत में मौूजद ’न’ को हटा दिया जाए। ऐसे में उससे पहले की ध्वनि अनुनासिक हो जाती है। जैसे जहान का जहाँ, दास्तान का दास्ताँ, जवान का जवाँ, पर्दानशीन को पर्दानशीं, नाज़नीन को नाज़नीं। अब मेरी जानकारी में दुनियान तो कोई शब्द नहीं है। अगर होता तभी उसे दुनियाँ लिखा जा सकता था।
दूसरा जवाब यह कि यदि उच्चारण के आधार पर सारे शब्दों की वर्तनी तय होने का नियम बन जाए तो हमें हिंदी के बहुत सारे शब्दों की स्पेलिंग बदलनी होगी। जैसे दान, मान, आम, कान, काम आदि को भले इस तरह लिखा जाता है लेकिन बोलते वक़्त उनका दाँन, माँन, आँम, काँन, काँम जैसा उच्चारण होता है (देखें चित्र नीचे)।
विश्वास न हो तो बोलकर देखें। यहाँ भी दा, का, आ, मा आदि में आने वाली यह अनुनासिक ध्वनि उसके बाद आने वाली ध्वनि ‘न’ और ‘म’ के कारण ही है । फ़र्क़ सिर्फ़ यह है कि दुनिया के मामले में अनुनासिक ध्वनि ‘न’ के बाद वाले वर्ण में चली गई तो दान, मान आदि में अनुनासिक ध्वनि ‘न’ और ‘म’ से पहले वाले वर्णों पर आ रही है।
यही नहीं, कहना, गहना, पहला, बहना आदि में भी हम केहना, गेहना, पेहला, बेहना से मिलता-जुलता उच्चारण करते हैं। क्यों करते हैं, यह मैं ठीक से नहीं जानता लेकिन ऐसा लगता है कि इसका ‘ह’ की ध्वनि से ज़रूर कुछ-न-कुछ लेना-देना है जो अपना प्रभाव (कहीं थोड़ा और कहीं पूरा) खोकर अपने से पहले वाले वर्ण के ‘अ’ वाले स्वर को ‘ए’ में बदल देती है। ‘ह’ के कारण यह ‘अ’ की ध्वनि ‘ए’ में कैसे बदलती है, यह मुझे बाँग्ला और गुजराती के आधार पर कुछ-कुछ समझ में आया है और वही आपको भी बताता हूँ।
पहला को बाँग्ला में कहते हैं पॉइला (या पॉयला) और गुजराती में पेला (या पेल्ला)। यानी बाँग्ला में ह की जगह इ आया – हो गया पॉइला और गुजराती में यह ‘इ’ प से मिलकर हो गया पे (स्वर संधि – अ+इ=ए, जैसे सुर+इंद्र=सुरेंद्र)। शब्द बना प+इ+ला=पेला। गुजराती में बहन का बेन (ब्हेन जैसा उच्चारण) भी शायद इसी वजह से है। कहना को भी गुजराती में क्हेवुँ कहा जाता है। यहाँ भी ह के कारण ए की मात्रा आ रही है।
कहना का केहना उच्चारण सुनने के लिए किशोर कुमार का ‘पड़ोसन’ वाला गाना सुन लीजिए – कहना है… कहना है। देखिए कि वे कहना और पहली बोल रहे हैं या केहना और पेहली। आप ख़ुद भी बोल और सुनकर जाँच सकते हैं कि आपकी ज़ुबान क्या बोलती है। प्रयास करके नहीं, सामान्य तौर पर बोलकर देखिए जैसे हम बातचीत के दौरान बोलते हैं।