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आलिम सर की हिंदी क्लास शुद्ध-अशुद्ध

43. सौ-सौ बार नमन करें मगर शत को शत् न करें

कुछ लोगों का शग़ल होता है कि हर महापुरुष की जयंती या पुण्यतिथि पर उनको याद करें, भले ही उन्हें उनके बारे में या उनके विचारों के बारे में रत्तीभर भी पता न हो। इस दौरान वे जिस वाक्य का इस्तेमाल करते हैं, वह है ‘शत-शत नमन’ लेकिन अधिकतर लिखते हैं ‘शत्-शत् नमन’ जो कि ग़लत है। क्यों ग़लत है, यह जानने के लिए आगे पढ़ें।

जब मैंने शत-शत नमन और शत्-शत् नमन पर फ़ेसबुक पर पोल किया तो 74% ने कहा कि शत्-शत् नमन होगा, 26% ने इसके विपरीत राय दी यानी शत का समर्थन किया। सही क्या है, यह हम नीचे जानते हैं।

शत या शत् का प्रयोग अपने स्वतंत्र रूप में हिंदी में कम ही होता है क्योंकि हमारे पास सौ और उससे बना सैकड़ा मौजूद हैं। लेकिन यौगिक रूप में उसका अच्छा-ख़ासा इस्तेमाल होता है। जैसे कोई क्रिकेटर जब सौ रन बनाता है तो हम लिखते हैं कि उसने ‘शतक’ बनाया। सौ साल के कालखंड को हम ‘शताब्दी’ लिखते हैं। जब किसी घटना के सौ साल होने पर कोई आयोजन होता है तो उसे ‘शतवार्षिकी’ कहते हैं।

आप देख रहे होंगे कि ऊपर के तीनों शब्दों (शतक, शताब्दी और शतवार्षिकी) में मैंने शत लिखा है, शत् नहीं। तो क्या इसका अर्थ यह है कि शत ही सही है, शत् नहीं? नहीं, अभी ऐसा कहना अनुचित होगा क्योंकि शब्दों के बीच में या अंत में मौजूद हल् चिह्न का लुप्त हो जाना हिंदी में सामान्य बात है। संस्कृत का महान् हिंदी में महान हो गया, श्रीमान् हिंदी में श्रीमान हो गया, भगवान् भी भगवान हो गया। सो हो सकता है कि शत् का भी शत हो गया हो!

त् और त में जो अंतर है, वह तो आप सभी जानते ही होंगे कि त् के साथ अ नहीं होता जबकि त में (त् के साथ) अ भी रहता है। संस्कृत में इन दोनों का हर हाल में अलग-अलग तरह से उच्चारण होगा लेकिन हिंदी में समस्या यह है कि यदि यह त् या त (या उसी के जैसा कोई व्यंजन) किसी अक्षर (सिल्अबल) या शब्द के आख़िर में आए तो दोनों मामलों में एक ही जैसा उच्चारण होता है यानी शत् और शत हिंदी में एक ही तरह से बोले जाते है। और इसी कारण भ्रम होता है कि किसमें हल् का चिह्न है, किसमें नहीं।

लेकिन ‘हल्’ की इस समस्या का ‘हल’ निकालना बहुत आसान है यदि आपको संधि की थोड़ी-बहुत जानकारी हो। शत् और शत में सही शब्द का पता भी हम इसी तरह से लगाएँगे। इसके लिए हमें स्वर और व्यंजन संधियों के दो नियम ध्यान में रखने होंगे। शत के मामले में स्वर संधि होगी (क्योंकि यहाँ त् के साथ अ मिला हुआ है) और शत् के मामले में व्यंजन संधि (क्योंकि त् एक व्यंजन है)।

1. स्वर संधि का नियम है कि जब एक ही जाति के दो स्वर आपस में मिलते हैं तो उनका उच्चारण दीर्घ हो जाता है। एक ही जाति यानी अ और आ, इ और ई, उ और ऊ आदि। इसी कारण इसे दीर्घ स्वर संधि कहते हैं।

2. व्यंजन संधि का नियम है कि यदि क्, च्, ट्, त् और प् के बाद कोई स्वर आए तो क् का ग्, च् का ज्, ट् का ड्, त् का द् और प् का ब् (यानी उसी वर्ग का तीसरा वर्ण) हो जाता है। इस हिसाब से यहाँ त् के बाद अ आने पर त्+अ=द हो जाएगा।

इतना समझ गए आप? ओके। तो अब हम तीन ऐसे शब्द देखेंगे जिनमें शत/शत् है जैसे शताधिक, शताब्दी और शताक्षी। तीनों में शत/शत् के बाद अधिक, अब्दी (अब्द=वर्ष) और अक्षी (अक्षि=आँख) लगा है। नीचे हम तीनों शब्दों के मामले में जानेंगे कि यदि सही शब्द शत् है तो व्यंजन संधि क्या होगी।

  • शत्+अधिक=(त् में स्वर नहीं है और उसके बाद अ है इसलिए त् और अ मिलकर द हो जाएगा) शदधिक
  • शत्+अब्दी=(त् में स्वर नहीं है और उसके बाद अ है इसलिए त् और अ मिलकर द हो जाएगा) शदब्दी
  • शत्+अक्षी=(त् में स्वर नहीं है और उसके बाद अ है सो त् और अ मिलकर द हो जाएगा) शदक्षी

अब हम इसे शत मानकर दीर्घ स्वर संधि का नियम अपनाते हैं और देखते हैं कि परिणाम क्या निकलता है।

  • शत+अधिक=(त में स्वर है और अ तो स्वर है ही इसलिए त और अ के मिलने से ता हो जाएगा) शताधिक
  • शत+अब्दी=(त में स्वर है और अ तो स्वर है ही इसलिए त और अ के मिलने से ता हो जाएगा) शताब्दी
  • शत+अक्षी=(त में भी स्वर है और अ तो स्वर है ही इसलिए त और अ के मिलने से ता हो जाएगा) शताक्षी

आपने देखा – अगर मूल शब्द शत् होता तो अधिक, अब्दी और अक्षी से मिलने पर शदधिक, शदब्दी और शदक्षी शब्द बनते न कि शताधिक, शताब्दी और शताक्षी। यानी मूल शब्द शत ही है, शत् नहीं। इसीलिए जब आप किसी को सौ-सौ बार नमन करना चाहें तो शत-शत नमन ही लिखें, शत्-शत् नमन नहीं।

शत् ग़लत है और शत ही सही है, यह मैं आपको किसी प्रामाणिक शब्दकोश की तस्वीरों (नीचे देखें) के आधार पर भी बता सकता था। लेकिन मैं चाहता था कि आप ख़ुद ही ऐसे शब्दों की उसी तरह पड़ताल करना सीखें जैसे कि मैंने ख़ुद की। पिछले दिनों जब प्रज्ञा श्रीवास्तव ने फ़ेसबुक मेसिंजर पर मुझसे यह सवाल पूछा कि शत् सही है या शत तो मैं पल भर के लिए पसोपेश में रहा। फिर ध्यान में आए – शताधिक, शताब्दी और शताक्षी; उनका संधि विच्छेद किया; और तब पूरे विश्वास के साथ जवाब में लिख दिया – सही है शत। बाद में शब्दकोश में देखा। सही था।

जैसा कि कहते हैं, हर चमकने वाली चीज़ सोना नहीं होती, उसी तरह हर संस्कृत शब्द के अंत में हल् का चिह्न (हलंत) नहीं होता। शत के बारे में तो आपने जान ही लिया। जाते-जाते ऐसे ही एक और शब्द के बारे में जान लीजिए। वह है श्रीयुत। श्रीमान् की देखादेखी कई लोग श्रीयुत को भी हलंत बना देते हैं। ‘श्री’ और ‘युत’ से मिलकर बने इस शब्द का सही रूप श्रीयुत ही है। इसी तरह पंचम, सप्तम आदि में भी हल् नहीं है।

और हाँ, आपमें से कुछ लोग ऊपर आए शताक्षी शब्द का अर्थ न जानते हों। उनको बता दूँ – इसका अर्थ है दुर्गा। दुर्गा का यह नाम क्यों पड़ा, इसके पीछे एक कथा है। नहीं मालूम हो तो इस लिंक पर जाकर यह कथा पढ़ सकते हैं –

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3 replies on “43. सौ-सौ बार नमन करें मगर शत को शत् न करें”

नमस्ते। शतशः सही है। इसका मूल संस्कृत रूप है शतशस्।

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