लालच स्त्रीलिंग है या पुल्लिंग? अगर वाक्य बनाना हो तो क्या बनाएँगे? हमें लालच नहीं करनी चाहिए या हमें लालच नहीं करना चाहिए? जब मैंने यह सवाल फ़ेसबुक पर पूछा तो 56% ने कहा – पुल्लिंग, 44% ने कहा – स्त्रीलिंग। सही क्या है, जानने के लिए आगे पढ़ें।
जब मैंने लालच के लिंग के बारे में फ़ेसबुक पर पोल किया तो मेरा अनुमान था कि 20-25% लोग इसे स्त्रीलिंग बताएँगे मगर उनकी तादाद इतनी ज़्यादा होगी, यह अंदाज़ा नहीं था। कोई 44% लोगों ने इसे स्त्रीलिंग माना। लालच को पुल्लिंग बताने वाले शेष 56% रहे।
लालच पुल्लिंग है। हिंदी शब्दसागर से लेकर ज्ञानमंडल का शब्दकोश – सभी में इसे पुल्लिंग बताया गया है। शब्दसागर में तो इसका उदाहरण भी दिया हुआ है – उसने लड़के को मिठाई ‘का’ लालच देकर उसके सब गहने ले लिए (देखें चित्र)। मिठाई ‘का’ लालच यानी लालच पुल्लिंग है। अगर स्त्रीलिंग होता तो मिठाई ‘की’ लालच होता।
40% से ज़्यादा लोगों ने लालच को स्त्रीलिंग क्यों बताया, इसके मुझे दो कारण दिखते हैं। एक, लालच दरअसल किसी चीज़ को पाने की उस तीव्र ‘इच्छा’ को कहते हैं जो कुछ-कुछ भद्दी भी हो। अब इच्छा पर ध्यान दीजिए। इच्छा और इसके अधिकतर पर्यायवाची शब्द – आकांक्षा, कामना, लिप्सा, अभिलाषा, ख़्वाहिश, तमन्ना, चाह – ये सब-के-सब स्त्रीलिंग हैं, इसलिए कुछ लोग लालच को भी स्त्रीलिंग मानकर वैसा ही लिखने-बोलने लगे हालाँकि लालच का पर्याय यानी लोभ तो पुल्लिंग ही है।
दूसरा कारण वह नीतिवाक्य है जो अच्छे-अच्छों को भरमा देता है। यह नीतिवाक्य है – लालच बुरी बला है। चूँकि बला से पहले ‘बुरी’ आता है, इसलिए वे लालच को स्त्रीलिंग मान बैठते हैं। वे यह नहीं समझते कि यहाँ ‘बुरी’ का प्रयोग लालच के हिसाब से नहीं, बला के हिसाब से किया गया है। विशेषण का लिंग उसके बाद वाले संज्ञाशब्द के हिसाब से तय होता है। जैसे अच्छा (वि.) लड़का (सं), अच्छी (वि.) लड़की (सं)। इसी कारण बुरी (वि.) बला (सं) क्योंकि बला स्त्रीलिंग है। यदि यहाँ ‘बला’ की जगह ‘रोग’ कर दें जो पुल्लिंग है, तब बुरा (वि.) रोग (सं) ही लिखेंगे। लालच बुरा रोग है।
निष्कर्ष यह कि बुरी या बुरा उसके बाद के शब्द के लिंग के अनुसार तय होता है। लालच अपने-आपमें पुल्लिंग है। लिखा जाएगा – हमें लालच नहीं करना चाहिए।
लालच के बारे में यह भ्रम कोई नया नहीं है। ‘जिस देश में गंगा बहती है’ के टाइटल सॉङ्ग में भी लालच स्त्रीलिंग के तौर पर इस्तेमाल हुआ है। याद कीजिए – मेहमाँ जो हमारा होता है, वो जान से प्यारा होता है, ज़्यादा ‘की’ नहीं लालच हमको, थोड़े में गुज़ारा होता है। दरअसल मुझे इस पोस्ट का आइडिया गाने की इस लाइन से ही आया। इस लिंक पर क्लिक या टैप करके गाने का वह हिस्सा सुनें।
लालच की तरह एक और शब्द है जिसके लिंग के बारे में संदेह होता है। वह है रामायण। रामायण पढ़ी या रामायण पढ़ा? इसपर मैं पहले चर्चा कर चुका हूँ। रुचि हो तो पढ़ें। लिंक आगे दिया हुआ है।