अनुमान-अनुमानित, अनुत्तर-अनुत्तरित, अनुकूल-अनुकूलित। इन सबमें एक समानता देख पा रहे होंगे आप। समानता यह कि शुरू वाले शब्दों में ‘इत’ लगाकर किसी कार्य के हो चुकने का अर्थ देने वाले शब्द बने हैं। ऐसे शब्दों को भूतकालिक कृदंत कहते हैं। लेकिन जब हम अनुवाद शब्द के साथ ऐसा ही करने का प्रयास करते हैं तो उससे अनुवादित शब्द बनने के बजाय अनूदित शब्द बनता है। यानी अनुवाद का ‘वा’ ग़ायब हो जाता है और अनु का ‘अनू‘ हो जाता है। ऐसा क्यों, इसी के बारे में चर्चा करेंगे इस क्लास में। रुचि हो तो आगे पढ़ें।
सच कहूँ तो मुझे बहुत पहले से यह तो मालूम था कि Translated का हिंदी पर्याय अनूदित होता है लेकिन क्यों होता है, यह मुझे नहीं मालूम था। इसके लिए मैंने संस्कृत और हिंदी के विद्वानों के एक समूह में वह सवाल पूछा। उस विद्वत् समूह से जो जानकारी मिली, उसके हवाले से इस क्लास में बताऊँगा कि अनुवाद से ‘अनूदित’ क्यों होता है, ‘अनुदित’ क्यों नहीं।
लेकिन आगे बढ़ने से पहले यह जान लें कि हिंदी जगत में कितने लोगों को यह जानकारी है कि अनुवाद की गई किसी पुस्तक को क्या कहेंगे – अनुदित या अनूदित। जब मैंने फ़ेसबुक पर यह पोल किया तो 65% लोगों ने अनूदित को सही बताया और 35% ने अनुदित को।
जिन 65% लोगों ने अनूदित को सही बताया, उनको उनकी सही जानकारी का श्रेय मिलना चाहिए मगर जिन 35% ने अनुदित को सही माना, उन्होंने ऐसा क्यों किया होगा, इस प्रश्न को भी दरकिनार नहीं किया जा सकता।
मेरे ख़्याल से हर किसी के दिमाग़ में पहला प्रश्न तो यही आता होगा कि अनुवाद से अनुवादित होना चाहिए (जिस तरह अनुमान से अनुमानित या अनुत्तर से अनुत्तरित होता है) – फिर ये अनुदित या अनूदित शब्द कहाँ से आए?
दूसरा, अगर अनुवाद से अनूदित होता भी है तो अनूदित ही क्यों, अनुदित क्यों नहीं? अनुवाद का अनु एक अतिरिक्त ‘उ’ से मिलकर अनू (अनूदित) में तब्दील क्यों हो गया?
आइए, हम इन दोनों सवालों के जवाब खोजते हैं। पहले सवाल का जवाब – अनुवादित भी सही है, कम-से-कम हिंदी में। अनुत्तरित और अनुमानित की तरह हम अनुवादित भी लिख सकते हैं। शब्दकोश भी इसे सही बताते हैं (देखें चित्र)।
अब दूसरा सवाल। संस्कृत में अनुवादित की जगह अनूदित क्यों है? इसका जवाब पाने के लिए हमें ‘अनु’ और ‘वाद’ के मूल अर्थ समझने होंगे।
अनु का अर्थ है ‘पीछे’ या ‘बाद में’ और वाद का अर्थ है ‘कथन’। इस आधार पर कहा जा सकता है कि जो बाद में कहा जाए, वह है अनुवाद। संस्कृत में इसका अर्थ है किसी बात का दोहराव। लेकिन Translation के अर्थ में भी इसका इस्तेमाल होता है, ख़ासकर हिंदी में क्योंकि किसी भी रचना का भाषांतर मूल रचना के ‘बाद’ ही होता है।
इस अनुवाद का जो ‘वाद’ है, वह बना है ‘वद्’ धातु से जिसका अर्थ है कहना या बोलना और इसी पर सारा दारोमदार है कि अनुवाद का भूतकालिक कृदंत रूप (past participle) क्या बनेगा।
हम अपनी सामान्य बुद्धि के अनुसार समझते हैं कि जिस तरह कथन का भूतकालिक कृदंत रूप ‘कथित’ होता है, प्रचलन का ‘प्रचलित’ होता है, उच्चारण का ‘उच्चारित/उच्चरित’ होता है, वैसे ही अनुवाद का ‘अनुवादित’ या ‘अनुवदित’ होता होगा।
लेकिन यहीं हम गच्चा खा जाते हैं क्योंकि संस्कृत के नियमों के अनुसार भले ही कथा के ‘कथ्’ धातु (root) से कथित बनता हो, मगर वाद के ‘वद्’ धातु से वदित/वादित नहीं, ‘उदित’ बनता है। देखें संस्कृत कोश में उदित का अर्थ।
अब इस उदित (बोला हुआ) की उससे पहले मौजूद अनु से संधि करें तो दीर्घ संधि के नियमानुसार अनु+उदित (उ+उ=ऊ) से अनूदित ही बनेगा, अनुदित नहीं।
- अनु (बाद में) + वाद (कथन) = अनुवाद।
- अनु (बाद में) + उदित (बोला हुआ) = अनूदित।
संधि के नियमों के बारे में हम सब जानते हैं और मुझे भी पता था कि अनूदित का संधि विच्छेद करने पर अनु+उदित ही होगा। परंतु उदित का तो मैं एक ही अर्थ जानता था – उगा हुआ। अब इस ‘उगे हुए’ का अनुवाद (Translation) से क्या रिश्ता है, यह पहेली मुझे बरसों से परेशान किए हुए थी।
इस विषय पर संस्कृत के विद्वानों से चर्चा करने पर जब पता चला कि उदित का अर्थ ‘बोला हुआ’ भी है तो चार दशक पुरानी इस पहेली का हल मिल गया।
अब अगर आपमें से कुछ लोग जानना चाहते हैं कि वद् से उदित कैसे बना तो इसमें आलिम सर कोई मदद नहीं कर पाएँगे। उसके लिए आपको संस्कृत के किसी जानकार की शरण में जाना होगा।