रामायण के अनुसार रावण की एक बहन थी जिसने वनवासी राम और लक्ष्मण से प्रणय निवेदन किया था और लक्ष्मण ने जिसके कान और नाक काट लिए थे। रावण की इस बहन के नाम के मामले में भारी कन्फ़्यूश्ज़न है। कोई इसे शूर्पणखा कहता है तो कोई शूपर्णखा। कुछ लोग शूपर्नखा, शूर्पनखा, सूपनखा आदि भी कहते हैं। आख़िर क्या था रावण की इस बहन का सही नाम, जानने के लिए आगे पढ़ें।
जब मैंने फ़ेसबुक पर इस संबंध में एक पोल किया तो 80% ने शूर्पणखा को सही बताया जबकि 20% के अनुसार सही नाम है शूपर्णखा।
सही है शूर्पणखा और इस नाम का अर्थ है वह स्त्री जिसके नाख़ून शूर्प यानी सूप जैसे बड़े-बड़े हों। शूर्प+नखा=शूर्पणखा।
यहाँ एक वाजिब प्रश्न आपके दिमाग़ में उठ सकता है कि शूर्प और नखा के जुड़ने से तो शूर्पनखा बनना चाहिए, शूर्पणखा क्यों हो रहा है। तो इसी प्रश्न का उत्तर हम आज की चर्चा में खोजेंगे कि कब संस्कृत के किन्हीं-किन्हीं शब्दों में ‘न’ की ध्वनि ‘ण’ में बदल जाती है।
पाणिनी के ‘अष्टाध्यायी’ में वे सूत्र दिए गए हैं जब किसी शब्द में मौजूद ‘न’ की ध्वनि ‘ण’ में बदल जाती है। नियम और भी हैं मगर हम अपनी आवश्यकता के अनुसार यहाँ केवल तीन नियमों की बात करते हैं।
1. रषाभ्यांनोणःसमानपदे (8.4.1): यदि एक ही पद वाले किसी शब्द में र्, ष् (या ऋ) की ध्वनि के ठीक बाद ‘न’ हो तो ‘न’ ‘ण’ में बदल जाता है। उदाहरण – रण, भाषण, ऋण।
2. अट्कुप्वाङ्नुम्व्यवायेऽपि (8.4.2): यदि शब्द में र्, ष् और ऋ तथा न के बीच कोई स्वर, कवर्ग या पवर्ग का कोई सदस्य, अनुस्वार अथवा ह् य् र् व् में से कोई ध्वनि हो तो भी ‘न’ का ‘ण’ हो जाता है। अगर इनके अलावा कोई अन्य ध्वनि आए जैसे चवर्ग, तवर्ग या टवर्ग की ध्वनि तो ‘न’ का ‘ण’ नहीं होगा।
3. पूर्वपदात्संज्ञायामगः (8.4.3) : यदि दो पदों वाले किसी संज्ञा शब्द में र्, ष् या ऋ हो और बाद के पद में ‘न’ हो तो वह भी ‘ण’ में बदल जाता है बशर्ते दोनों के बीच ‘ग्’ की ध्वनि न हो।
शूर्प+नखा के शूर्पणखा में परिवर्तन को हम दूसरे और तीसरे नियमों के तहत परख सकते हैं।
(क) दूसरे नियम के अनुसार र, ष या ऋ और न के बीच पवर्ग की ध्वनि या स्वर होने पर ‘न’ ‘ण’ में बदल जाता है। आप देखें कि शूर्प और नखा में र् और न् के बीच ‘प्‘ और ‘अ‘ हैं इसलिए यहाँ ‘न’ का ‘ण’ में परिवर्तन हो जाता है।
(ख) शूर्प+नखा में पूर्व पद शूर्प है। शूर्प (श्+ऊ+र्+प+अ) में ‘र्‘ की ध्वनि है और बाद वाले पद नखा में ‘न्’ की ध्वनि है। बीच में ‘ग्’ की ध्वनि भी नहीं है। सो इस तीसरे नियम के तहत भी शूर्पनखा शूर्पणखा में बदल जाता है (पढ़ें नियम 3)।
ऊपर के नियमों की परीक्षा करने और इसे और अच्छी तरह समझने के लिए हम एक जैसे कुछ उदाहरण लेते हैं और देखते हैं कि कैसे दो मामलों में अयन अयण में बदलता है और दो मामलों में नहीं बदलता।
- रामायण/कृष्णायन
- उत्तरायण/दक्षिणायन
रामायण राम (र्+आ+म्+अ) और अयन (अ+य्+न्+अ) से मिलकर बना है। आप देखेंगे कि राम में मौजूद र् की ध्वनि और अयन में मौजूद न् की ध्वनि के बीच ‘आ’, ‘म्’, ‘अ’, ‘अ’, ‘य्’ और ‘अ’ हैं। ये सभी ध्वनियाँ दूसरे नियम में दी गई शर्तों के अनुरूप हैं – एक ‘आ’ और तीन ‘अ’ (चारों स्वर), ‘म्’ (पवर्ग) और ‘य्’ (ह् य् व् र्) – इसलिए रामायन का ‘न’ ‘ण’ में बदल गया। हो गया रामायण।
लेकिन कृष्णायन में ष् के बाद ‘ण‘ आ जाता है जो टवर्ग का सदस्य है और नियम 2 के तहत स्वीकृत ध्वनि समूहों (स्वर, कवर्ग, पवर्ग, ह् य् व् र्) में नहीं आता। इसलिए यहाँ अयन का अयण में परिवर्तन नहीं होगा।
अब उत्तरायण (उत्तर+अयन) और दक्षिणायन (दक्षिण+अयन) की बात करते हैं। उत्तर (उ+त्+त्+र्+अ) +अयन (अ+य्+अ+न्+अ) में ‘र्’ के बाद ‘अ’ स्वर तीन बार और ‘य्’ की ध्वनि एक बार आ रही है। ये सब नियम 2 की स्वीकृत ध्वनियों के अंदर हैं (देखें नियम 2) इसीलिए अयन का ‘न’ ‘ण’ में बदल जाता है।
लेकिन दक्षिणायन (दक्षिण+अयन) में दक्षिण (द्+अ+क्+ष्+इ+ण्+अ) में मौजूद ‘ष्’ की ध्वनि के बाद जो ध्वनियाँ आ रही हैं, उनमें ‘ण्‘ भी है जो टवर्ग की ध्वनि है। नियम 2 के अनुसार शब्द के बीच में चवर्ग, तवर्ग या टवर्ग की ध्वनि आने पर ‘न’ का ‘ण’ में परिवर्तन नहीं होगा (देखें नियम 2 में वर्णित प्रतिबंध)। इसलिए दक्षिणायन दक्षिणायन ही रहता है, दक्षिणायण नहीं होता।
अब जब आप सही शब्द जान गए हैं तो यह भी समझ गए होंगे कि इसका सही उच्चारण शूर्पण+खा जैसा नहीं, बल्कि शूर्प+णखा जैसा होगा।
चलिए, रावण की बदनाम बहन का नाम तो आप जान गए। लेकिन रावण के एक बेटे का सही नाम क्या आप जानते हैं – वह मेघनाथ है या मेघनाद? इसपर हम पहले चर्चा कर चुके हैं। रुचि हो तो नीचे दिए गए लिंक पर जाकर पढ़ें।