कवि का स्त्रीलिंग शब्द क्या है? जब मैंने यह सवाल फ़ेसबुक पर पूछा तो 70-75% लोगों ने पूरे यक़ीन के साथ कहा – कवयित्री। शेष ने अन्य विकल्पों कवित्री, कवियत्री आदि को सही बताया। लेकिन क्या वाक़ई कवयित्री कवि का स्त्रीलिंग रूप है? जानने के लिए आगे पढ़ें।
अधिकतर लोग जानते हैं कि कविता लिखने वाले पुरुष को ‘कवि’ और कविता रचने वाली स्त्री को ‘कवयित्री’ कहते हैं। हाँ, थोड़ा कन्फ़्यूश्ज़न ‘वयित्री’ और ‘वियत्री’ को लेकर हो जाता है। कुछ लोग कवि की देखादेखी ‘इ’ की मात्रा ‘य’ में न लगाकर ‘व’ में लगा देते हैं और ‘कवियत्री’ को सही समझ बैठते हैं। कुछ लोग ‘कवित्री’ भी बोलते हैं। मगर ‘कवियत्री’ और ‘कवित्री’ ये दोनों शब्द ग़लत हैं। सही शब्द है ‘कवयित्री’।
परंतु इसका यह मतलब नहीं कि ‘कवयित्री’ शब्द कवि का स्त्रीलिंग रूप है। कारण, कवयित्री कवि से नहीं, किसी और शब्द से बना है और जैसा कि हम नीचे समझेंगे किसी शब्द का स्त्रीलिंग रूप बनाने के लिए ज़्यादातर मामलों में यह आवश्यक है कि वह उसके पुल्लिंग रूप में कोई न कोई प्रत्यय लगाकर बना हो। जैसे मोर से मोरनी (नी प्रत्यय), लड़का से लड़की (ई प्रत्यय) आदि।
अब आप पूछेंगे, कवयित्री कवि से नहीं बना तो किससे बना है। पाँच साल पहले तक मैं भी नहीं जानता था। जुलाई 2018 में जब मैंने पहली बार कवि के स्त्रीलिंग रूप पर फ़ेसबुक पोल किया तब यह जानने की कोशिश की थी कि ‘कवयित्री’ शब्द बना कैसे। वह कवि से नहीं बना था, यह साफ़ नज़र आ रहा था क्योंकि यदि वह कवि से बना होता तो कविन, कविका, कवित्री, कविआइन जैसा ही कुछ होना चाहिए था। लेकिन कवयित्री तो कवि से बिल्कुल ही भिन्न है।
मैंने सोचा। बहुत सोचा। मगर कवि और कवयित्री का कोई तालमेल किसी तरह नहीं बन रहा था।
इसी विचारक्रम में कवयित्री से मिलते-जुलते यानी ‘त्री’ से अंत होने वाले कुछ शब्दों पर ग़ौर किया। देखा कि नेत्री का पुल्लिंग नेता होता है, अभिनेत्री का अभिनेता। यानी इन दोनों शब्दों के पुल्लिंग और स्त्रीलिंग रूपों में केवल एक अंतर है। पुल्लिंग शब्द के अंत में ‘ता’ है और स्त्रीलिंग शब्द के अंत में ‘त्री’ है। अब कवयित्री पर भी उसी फ़ॉर्म्युले को लागू करके सोचा कि उसका पुल्लिंग क्या हो सकता है? मैंने कवयित्री में मौजूद ‘त्री’ को ‘ता’ में बदला तो बन गया कवयिता। यह शब्द कुछ अटपटा-सा लगा। कुछ क्या, बहुत अटपटा लगा। अपने जीवनकाल में ऐसा शब्द न कभी सुना, न कभी पढ़ा। फिर हठात कवयिता से मिलता-जुलता एक शब्द याद आया – रचयिता। सोचा, जब रचयिता हो सकता है तो हो सकता है कि कवयिता भी कुछ हो।
मैंने हिंदी शब्दसागर देखा। वहाँ कवयिता था। अर्थ था – कवि। स्त्रीलिंग – कवयित्री (देखें चित्र)।
शब्दसागर की इस एंट्री से पूरी तरह साबित हो गया कि कवयित्री कवयिता (संस्कृत में कवयितृ) से बना है, न कि कवि से। यही कारण है कि कवयित्री का जोड़ कवि से नहीं मिलता।
अब यहाँ दो प्रश्न उठते हैं।
- यदि कवयित्री कवयिता का स्त्रीलिंग रूप है तो कवि का स्त्रीलिंग रूप क्या है?
- माता-पिता, भाई-बहन जैसे शब्दों में भी कोई व्युत्पत्तिमूलक समानता नहीं दिखती लेकिन फिर भी हम उन्हें एक-दूसरे का विपरीतलिंगी शब्द कहते हैं। क्या इसी तरह कवि का स्त्रीलिंग रूप कवयित्री नहीं हो सकता, भले ही उनकी शब्दरचना अलग-अलग ढंग से हुई हो?
पहले सवाल का जवाब पहले। जी हाँ, कवि शब्द का कोई स्त्रीलिंग नहीं है। कारण, कवि, हरि, कपि, रवि जैसे संस्कृत शब्द नित्य पुल्लिंग में आते हैं। यानी ये हमेशा पुल्लिंग रहते हैं। उनका स्त्रीलिंग रूप बन नहीं सकता। इसलिए इनका स्त्रीलिंग रूप होता ही नहीं। मैंने इस बात की पुष्टि संस्कृत के जानकार डॉ. शक्तिधरनाथ पांडेय से भी की (देखें चित्र)।
यह कोई चौंकाने वाली बात नहीं है। हिंदी में कई शब्द हैं जो नित्य पुल्लिंग या नित्य स्त्रीलिंग होते हैं। अब भेड़िया का स्त्रीलिंग क्या होगा? और खटमल का? इसी तरह चील और कोयल नित्य स्त्रीलिंग हैं। इनका पुल्लिंग शब्द क्या होगा?
इसलिए तकनीकी रूप से कहें तो कवि का स्त्रीलिंग रूप हो ही नहीं सकता। हाँ, अगर आप किसी महिला के लिए कवि शब्द का प्रयोग करना चाहें तो शायद उसे महिला कवि कह सकते हैं हालाँकि उसमें भी उलझनें हैं जिसपर हम आगे बात करेंगे। फ़िलहाल इतना तो स्पष्ट है कि कवयित्री कवि का नहीं, कवयिता का स्त्रीलिंग रूप है।
मैं ऐसा क्यों कह रहा हूँ, इसे एक और तरीक़े से समझें। बाल और बालक का एक ही अर्थ है। लेकिन बाल का स्त्रीलिंग क्या बालिका होगा? नहीं होगा। बाल का स्त्रीलिंग बाला और बालक का स्त्रीलिंग बालिका होगा। इसी तरह अश्व का स्त्रीलिंग क्या घोड़ी होगा? नहीं होगा। अश्व का स्त्रीलिंग अश्वा होगा, घोड़ी नहीं, भले ही घोड़ी और अश्वा का एक ही अर्थ हो। घोड़ी केवल घोड़े का स्त्रीलिंग होगा। इसी तरह कवि और कवयिता का एक ही अर्थ होने के बावजूद कवि का स्त्रीलिंग कवयित्री नहीं होगा। वह कवयिता का ही स्त्रीलिंग रूप होगा।
अब दूसरे प्रश्न का जवाब। सवाल है – माता-पिता, भाई-बहन में शाब्दिक साम्य नहीं है, फिर भी वे एक-दूसरे के विपरीतलिंगी शब्द हैं। क्या इस आधार पर कवि का स्त्रीलिंग कवयित्री कहा जा सकता है क्योंकि माता-पिता और भाई-बहन की तरह लैंगिक आधार पर दोनों का प्रतिकूल अर्थ है भले ही शब्दनिर्माण के स्तर पर दोनों अलग-अलग तरह से बने हों?
मेरे भाषामित्र और व्याकरण के जानकार योगेंद्रनाथ मिश्र का जवाब है – हाँ। उनके अनुसार हिंदी में कविता लिखने वाले पुरुष को कवि और कविता लिखने वाली महिला को कवयित्री कहा जाता है। कवयिता शब्द हिंदी में चलता ही नहीं है। इसलिए कवि का स्त्रीलिंग कवयित्री कहा जा सकता है। उनकी टिप्पणी नीचे देखें।
मैं फ़िलहाल मिश्र जी की राय से सहमत नहीं हो पाया हूँ क्योंकि किसी शब्द का विपरीत लिंग में क्या रूप होगा, यह केवल अर्थ के आधार पर तय नहीं होता (वरना अश्व का स्त्रीलिंग घोड़ी हो सकता था), यह मुख्यतः शब्दरचना के आधार पर तय होता है। इसलिए मेरा मत यही है कि कवि का स्त्रीलिंग रूप कवयित्री नहीं हो सकता।
क्या कवयित्री के लिए महिला कवि का प्रयोग हो सकता है? इसके बारे में मैं सुनिश्चित नहीं हूँ क्योंकि उससे नई उलझनें पैदा हो सकती हैं कि तब क्रियादि का रूप पुल्लिंग में होगा या स्त्रीलिंग में।
वैसे उसकी ज़रूरत भी नहीं है क्योंकि हमारे पास कवयित्री के रूप में एक बहुप्रचलित शब्द मौजूद है जो महिला कवि का अर्थ देता है। अब इससे क्या अंतर पड़ता है कि वह तकनीकी रूप से कवि का स्त्रीलिंग है या नहीं।