हम सब जानते हैं कि क़लम स्त्रीलिंग है – मेरी क़लम, न कि मेरा क़लम, नीली क़लम, न कि नीला क़लम। लेकिन कमाल अमरोही के लिखे मशहूर गीत ‘कहीं एक मासूम, नाज़ुक-सी लड़की’ में एक लाइन है – क़लम हाथ से छूट जाता तो होगा…। अगर क़लम स्त्रीलिंग है तो यहाँ होना चाहिए था – क़लम हाथ से छूट जाती तो होगी…! तो क्या कमाल अमरोही ने इस गीत में भाषाई ग़लती कर दी? एक ऐसी ग़लती जिसपर किसी और का ध्यान नहीं गया। आइए, जानते हैं, मामला क्या है। क़लम स्त्रीलिंग है या पुल्लिंग?
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आलिम सर की हिंदी क्लास यानी हिंदी शब्दों और व्याकरण से जुड़ी दुविधाओं का आसान भाषा में समाधान।
परमेश्वर, परमात्मा, परमार्थ, परमाणु आदि में जो शुरुआती शब्द है, वह क्या है – परम या परम्। आप कहेंगे, इससे क्या फ़र्क़ पड़ता है। सही है, परमेश्वर या परमात्मा में तो कोई अंतर नहीं पड़ेगा लेकिन जब आप पूज्य या पिता से पहले यह शब्द लगाएँगे तो आपको तय करना होगा कि परम् लिखें या परम। जब मैंने फ़ेसबुक पर यही सवाल किया तो पता चला कि मामला बराबर का है। तक़रीबन आधे परम् को सही बताते हैं, आधे परम को। अब सही क्या है, जानना है तो आगे पढ़ें।
1972 में एक मूव़ी आई थी जिसका नाम था ‘रिवाज’। उसके 40 साल बाद एक और मूव़ी आई इसी नाम से मगर आख़िर में ‘ज’ की जगह ‘ज़’ था – यानी ‘रिवाज़’। तो क्या 40 सालों में रिवाज की स्पेलिंग बदलकर रिवाज़ हो गई? या फिर दोनों में से कोई एक स्पेलिंग ग़लत है? कौनसी सही और कौनसी ग़लत है, यह तो शब्दकोश ही बता सकते हैं। मगर यह क्या? वहाँ भी झोल है। उर्दू का शब्दकोश ‘रिवाज’ को सही बताता है तो हिंदी का शब्दकोश ‘रिवाज़’ को। तो क्या उर्दू का ‘रिवाज’ हिंदी में आकर ‘रिवाज़’ हो गया? जानने के लिए आगे पढ़ें।
अंग्रेज़ी के शब्दों या नामों का हम हिंदीभाषी ग़लत उच्चारण करें तो समझ में आता है क्योंकि अंग्रेज़ी के स्वरों – A, E, I, O और U के कई-कई उच्चारण होते हैं। लेकिन यदि हिंदी या संस्कृत के नामों का हिंदीभाषी ग़लत उच्चारण करें, ग़लत स्पेलिंग लिखें तो यह हैरत वाली बात है। मगर ऐसा है। जब मैंने दीपांकर और दीपंकर पर पोल किया तो बहुमत ने ग़लत स्पेलिंग के पक्ष में राय दी। क्या है सही शब्द और उसका अर्थ क्या है, यह जानने के लिए आगे पढ़ें।
ढूँढ़ना और ढूँढना में क्या सही है – एक ऐसा सवाल है जिससे मैं अपने करियर के आरंभ से जूझता रहा हूँ। शब्दकोश में था ‘ढूँढ़ना’ मगर मुझे लगता था कि ढूँढना ही सही होना चाहिए। मैं तब थोड़ा बाग़ी क़िस्म का था सो कोशकारों को अंतिम जज नहीं मानता था। अगर उन दिनों किसी ने मुझे ‘ढ़’ और ‘ड़’ का नियम समझा दिया होता तो शायद मैंने बहुत पहले से ढूँढ़ना लिखना शुरू कर दिया होता। आइए, जानते हैं कि शब्दकोश क्यों ढूँढ़ना को सही और ढूँढना को ग़लत बताते हैं।