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204. पति-पत्नी में नोकझोंक होती है या नोंकझोंक?

नोकझोंक लिखना सही है या नोंकझोंक? यानी झोंक की तरह नोक के नो पर बिंदी लगेगी या नहीं? मैंने यह सवाल दो अलग-अलग मंचों पर पूछा और दोनों पर एक जैसी राय मिली। क़रीब तीन-चौथाई या उसे भी ज़्यादा लोगों ने कहा – नोकझोंक सही है। शेष का मानना था कि नोंकझोंक लिखना चाहिए। क्या सही है और क्यों सही है, आज की चर्चा इसी पर। रुचि हो तो पढ़ें।

सही है नोकझोंक। नोंकझोंक लिखना ग़लत है। ग़लत क्यों है, इसपर हम नीचे चर्चा करेंगे।

नोकझोंक (जिसे नोक-झोंक भी लिखते हैं) फ़ारसी के नोक और हिंदी के झोंक से मिलकर बना है (देखें चित्र)।

चूँकि मुद्दा नोक के ‘नो’ पर बिंदी लगने या न लगने का है, इसलिए हम आज केवल इसपर बात करेंगे कि नोक पर बिंदी क्यों नहीं लगती या क्यों नहीं लगनी चाहिए।

पहले ही बताया कि नोक फ़ारसी का शब्द है और फ़ारसी में अँ, आँ, इँ, ईं, एँ, ऐं जैसी अनुनासिक ध्वनियाँ शब्दों के शुरू या बीच में नहीं होतीं। यानी आपको अरबी-फ़ारसी में आँख, काँच, चोंच, खरोंच जैसे शब्द नहीं मिलेंगे। वहाँ केवल शब्द के अंत में ऐसी ध्वनि मिलती है। जैसे आसमाँ, कारवाँ, दास्ताँ, मजनूँ आदि।

एक वाक्य में कहें तो सिद्धांत यह है कि अरबी-फ़ारसी परिवार की भाषाओं में शुरू में अनुनासिक ध्वनि नहीं होती और नोक भी फ़ारसी शब्द है, इसलिए नोक के ‘नो’ में बिंदी लग ही नहीं सकती।

यह सिद्धांत याद रखेंगे तो आज के बाद से आप अरबी-फ़ारसी परिवार के किसी शब्द के शुरू में अनुनासिक (नासिक यानी नाक) ध्वनि का उच्चारण नहीं करेंगे। लेकिन सबसे मुश्किल बात यह है कि यह पता कैसे चले कि यह शब्द अरबी-फ़ारसी का है और वह शब्द संस्कृत का है, यह देशी है, वह विदेशी है। ख़ासकर नोक जैसे शब्दों के बारे में तो यह बहुत ही कठिन में जिनमें कोई नुक़्ता भी नहीं लगता। आप देखिए कि ‘नोक’ से ही मिलता-जुलता शब्द ‘नौका’ ख़ालिस संस्कृत का है।

आपकी परेशानी सही है। परंतु मैं यहाँ आपको एक और बात बता दूँ। नोक यदि संस्कृत का शब्द होता, तब भी उसमें बिंदी नहीं लगती। कारण नीचे समझते हैं।

‘न’ और ‘म’ दो ऐसी प्रमुख ध्वनियाँ हैं जो नाक की मदद से बोली जाती हैं यानी इनके उच्चारण के दौरान हवा मुँह के साथ-साथ नाक से भी निकलती है। आप नाक के दोनों छेदों को बंद करके ‘क’ बोलने की कोशिश करें। आप आसानी से बोल पाएँगे। लेकिन ऐसा ही करके ‘न’ या ‘म’ बोलने का प्रयास करें। नहीं बोल पाएँगे। इसीलिए इन्हें और ङ, ञ और ण को नासिक्य व्यंजन कहा जाता है। ये हिंदी वर्णमाला के पाँच वर्गों की पाँचवीं ध्वनियाँ हैं और इसी कारण इनको पंचमाक्षर भी कहा जाता है।

पंचमाक्षरों के अलावा अन्य किसी व्यंजन का उच्चारण करते समय हम नाक की मदद नहीं लेते जैसा कि हमने ‘क’ के मामले में देखा। लेकिन स्वरों का उच्चारण करते समय हम नाक से हवा छोड़कर उसकी ध्वनि में कुछ अंतर कर सकते हैं। जैसे आँच, आँख, ऊँट आदि। इनका उच्चारण आच, आख और ऊट से अलग है। इसी तरह जब ये स्वर किसी व्यंजन से जुड़े होते हैं, तब भी ऐसी ध्वनि निकल सकती है जैसे साँच, पूँछ, चोंच जिनका उच्चारण साच, पूछ और चोच से बहुत अलग है। नाक से बोली जाने वाली इस ध्वनि को अनुनासिक ध्वनि कहते हैं और इसको दर्शाने के लिए वर्ण के ऊपर चंद्रबिंदु लगाया जाता है हालाँकि टाइपिंग की सुविधा के चलते कुछ या सभी मामलों में अब चंद्रबिंदु की जगह बिंदी लगाई जा रही है।

निष्कर्ष यह कि पंचमाक्षरों और अनुनासिक दोनों ही ध्वनियों का उच्चारण करते समय हवा नाक से भी निकलती है। इन्हें हम नाक से निकलने वाली आवाज़ कह सकते हैं।

अब हम नोक पर आते हैं। देखें कि ‘नो’ में क्या है? एक ‘न्’ है और उसके साथ लगा ‘ओ’ स्वर है। ‘नो’ में ‘न्’ के रूप में पहले से ही नासिक्य ध्वनि है और उसे बोलते समय नाक से हवा निकल रही है। इस कारण उसके साथ ‘ओ’ स्वर जोड़कर ‘नो’ (न्+ओ) बोलने पर ‘ओ’ स्वर अपने-आप अनुनासिक हो जाता है। अब जबकि ‘न्’ की उपस्थिति के कारण ‘नो’ अपने-आप अनुनासिक हो जा रहा है तो उसके अनुनासिकत्व (यानी नाक की ध्वनि) को दर्शाने के लिए एक अतिरिक्त बिंदी लगाने की ज़रूरत क्या है?

इसे यूँ समझिए कि हलुआ बनाने समय हम आटे में चीनी डालते हैं क्योंकि आटा मीठा नहीं होता और हमें मीठा हलुआ चाहिए। लेकिन क्या हम गन्ने के रस को मीठा करने के लिए कभी उसमें चीनी डालते है? नहीं डालते क्योंकि गन्ने का रस ख़ुद ही मीठा है।

इसी तरह जो ध्वनि नाक से नहीं बोली जाती जैसे ‘क’, उसमें अनुनासिकत्व दिखाने के लिए बिंदी/चंद्रबिंदु का प्रयोग होता है ताकि काटा और काँटा में अंतर किया जा सके लेकिन जिसमें पहले से नाक की ध्वनि है जैसे ‘म’ या ‘न’, उसमें नाक की ध्वनि दिखाने के लिए बिंदी या चंद्रबिंदु की आवश्यकता क्यों होनी चाहिए?

एक वाक्य में कहें तो पंचमाक्षर की हर ध्वनि में नाक की आवाज़ है और उस ध्वनि से जुड़े किसी भी स्वर में नाक की आवाज़ दर्शाने के लिए अलग से बिंदी लगाने की ज़रूरत नहीं है।

लेकिन हम जानते हैं कि ‘नो’ के साथ बिंदी लगती है। ख़ासकर जब वह शब्द के अंत में आता है। जैसे ‘दोनों’ में लगती है, ‘गानों’ में लगती है। तो क्या ‘दोनों’ और ‘गानों’ बोलते समय हम ‘नो’ को और अधिक अनुनासिक कर देते हैं?

यह जानने के लिए मैंने एक प्रयोग किया। आप भी यह प्रयोग कर सकते हैं। मैंने अलग-अलग उम्र के दस परिचितों को कल वॉट्सऐप पर एक संदेश भेजा और कहा कि आप अपनी आवाज़ में ‘दोनों’ और ‘मानो या न मानो’ रिकॉर्ड करके भेजिए।

मैंने सबको सुना और एकाध को छोड़कर सबने दोनों के ‘नों’ और मानो के ‘नो’ का एक जैसा उच्चारण किया। आप भी उनमें से कुछ को सुनिए।

निष्कर्ष यह कि ‘नो’ में बिंदी लगाएँ या न लगाएँ, उसका उच्चारण एक जैसा होता है।

परंतु यह भी सच है कि ‘दोनों’ में बिंदी है, गाना के बहुवचन रूप ‘गानों’ में भी बिंदी लगती है। क्या यहाँ बिंदी नहीं लगनी चाहिए थी?

उच्चारण की दृष्टि से कहें तो नहीं लगनी चाहिए। लेकिन व्याकरण की दृष्टि से कहें तो लगनी चाहिए। क्यों, यह हम नीचे समझते हैं।

पहले ‘दोनों’ की बात करते हैं।

‘दोनों’ दो से बना है। ‘दो’ की संख्या में ‘सभी’ का भाव लाने लिए ‘नो’ जोड़ा गया है और उसमें बिंदी लगाई गई है। तीन, चार, पाँच, छह, सात, आठ, नौ, दस आदि में भी ऐसा ही होता है।

आइए, देखते हैं कि दस में ’सभी’ का भाव जोड़ने के लिए (सभी दस दिशाएँ=दसों दिशाएँ) हम क्या करते हैं। हम दस को ओकारांत करते हैं और उसमें बिंदी लगाकर दसों कर देते हैं। यही बात चारों, पाँचों, छहों, सातों, आठों, नौओं/नवों पर भी लागू होती है। तो जब हर संख्या के अंत में ‘ओ’ के साथ बिंदी लग रही है तो दो और तीन में भी लग गई और ‘नो’ बन गया ‘नों’। एक जैसे शब्द, एक जैसा नियम।

अब ‘गानों’ की बात करते हैं। यह गाना का बहुवचन है। गाना की तरह रास्ता, गधा, कमरा आदि भी आकारांत हैं। जब इन आकारांत शब्दों का बहुवचन बनाया जाता है तो नियमानुसार रास्ता रास्तों, गधा गधों और कमरा कमरों में बदल जाता है। सबके अंत में मौजूद ‘आ’ का स्वर ‘ओं’ में बदल जाता है। ओ में बिंदी लग जाती है। इसीलिए गाना का ‘ना’ भी ‘नों’ में बदल जाता है। यहाँ भी एक जैसा शब्द, एक जैसा नियम।

अब अंत में ‘मानो’ की बात करते हैं। यह मान-ना के मान धातु से बना है। कर-ना, दौड़-ना, जीत-ना की तरह मान-ना भी क्रिया है। जब हम दौड़ना, जीतना, करना का आज्ञार्थक रूप बनाते हैं तो दौड़ना का दौड़ो, जीतना का जीतो और करना का करो हो जाता है। क्या इनमें से किसी के अंत में मौजूद ‘ओ’ के साथ बिंदी लगती है? नहीं लगती। इसीलिए मानना का मानो करने पर उसमें भी बिंदी नहीं आती।

यानी नासिक्य ध्वनियों वाले जिन स्वरों के साथ बिंदी लग रही है, वह व्याकरण के चलते लग रही है, उच्चारण के चलते नहीं।

अगर व्याकरण के किसी नियम के पालन की बाध्यता न हो तो आम तौर पर ऐसी ध्वनियों के साथ बिंदी नहीं लगती। नोच, नोट, नोन – कहीं बिंदी नहीं। इसी तरह ‘मो’ से शुरू होने वाला कोई शब्द नहीं जिसमें बिंदी लगती हो। मोच, मोहरा, मोटा, मोगरा – इनमें से किसी में अनुनासिक ध्वनि को दर्शाने के लिए अलग से बिंदी नहीं है।

लेकिन कई शब्दों में है भी। जैसे माँ में है, मूँछ में है, मैं और में-में में है। नींद में है, नाँद में है। इन सबमें बिंदी या चंद्रबिंदु है हालाँकि उसका कोई व्याकरणिक कारण समझ में नहीं आता। आपको शायद मालूम हो कि संस्कृत में अनुनासिक ध्वनि होती ही नहीं है सो मातृ या माता से माँ कैसे बना, समझना मुश्किल है। मातृ या माता से ‘मा’ बनना चाहिए था और बांग्ला व गुजराती में ‘मा’ ही चलता है। लेकिन हिंदी में ‘मा’ पर चंद्रबिंदु लग गया और वही (माँ) चल भी गया।

भाषा व व्याकरण के जानकार व चिंतक योगेंद्रनाथ मिश्र बताते हैं – अगर इन शब्दों के साथ बिंदी या चंद्रबिंदु नहीं होते तब भी उनका उच्चारण वही होता। उनके अनुसार माँ और मा का एक ही उच्चारण है, मैं और मै का एक ही उच्चारण है।

इसी तरह नींद और नीद का भी एक ही उच्चारण है जब तक कि आप नींद का नीन्द की तरह न बोलें। तब यह बिंदी अनुनासिक ध्वनि के बजाय अनुस्वार का काम करेगी जिसके बारे में मैंने ऊपर संकेत किया है। लेकिन एक बार फिर स्पष्ट कर देना उचित है कि आज की चर्चा में मैंने जहाँ-जहाँ बिंदी की बात की है, यह वह बिंदी है जो टाइपिंग की सुविधा के लिए चंद्रबिंदु के स्थान पर लगाई जाती है। मैं उस बिंदी की बात नहीं कर रहा जो ङ्, ञ्, ण्, न् और म् की ध्वनि के रूप में विकल्प से लगाई जाती हैं। जैसे मञ्च को मंच भी लिखते हैं। वहाँ बिंदी ‘ञ्’ का उच्चारण दिखाने को लगाई गई है जो ‘म’ से स्वतंत्र है। इसलिए वहाँ बिंदी लगाने का पूरा औचित्य है।

नोक के बहाने आज हमने अरबी-फ़ारसी परिवार की भाषाओं से जुड़े एक सिद्धांत की बात की। ऐसा ही एक और सिद्धांत है जो इ/ई और उ/ऊ से अंत होने वाले शब्दों के बारे में है। इससे पता चलता है कि यानि और यानी में कौन ग़लत और कौन सही है। इस नियम पर हम पहले चर्चा कर चुके हैं। रुचि हो तो पढ़ें।

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