सेहत को कहते हैं स्वास्थ्य, यह तो आप जानते ही होंगे। मगर क्या आप जानते हैं कि जिसका स्वास्थ्य अच्छा है, उसे स्वस्थ कहेंगे या स्वस्थ्य? जब मैंने यही सवाल फ़ेसबुक पर पूछा तो अधिकतर लोगों ने कहा, स्वस्थ सही है हालाँकि स्वस्थ्य के समर्थक भी बहुत कम नहीं थे। सही क्या है और क्यों है, जानने के लिए आगे पढ़ें।
‘स्वस्थ’ बनाम ‘स्वस्थ्य’ मेरी लिस्ट में बहुत समय से था लेकिन मैं इसपर पोल करते हुए बच रहा था क्योंकि मुझे लगता था, अधिकतर लोग सही शब्द जानते होंगे। मगर पिछले दिनों जब पत्रिका और जागरण जैसी वेबसाइटों पर ग़लत रूप लिखा देखा (देखें चित्र) तो लगा, इस शब्द पर पोल किया जाना चाहिए।
स्वस्थ और स्वस्थ्य के बीच पोल मैंने दो जगह किया था। एक, हिंदी कविता पर और दूसरा अपने प्रोफ़ाइल पेज पर। हिंदी कविता पर 87% ने स्वस्थ के पक्ष में वोट किया। स्वस्थ्य के पक्ष में केवल 13% वोट पड़े। उधर मेरे पेज पर स्वस्थ के पक्षधर 73% थे जबकि स्वस्थ्य को सही बताने वालों की संख्या ठीकठाक थी – 27% (देखें चित्र)।
सही शब्द स्वस्थ है, यह आपने ऊपर के चित्र से जान ही लिया होगा। स्वस्थ बना स्व (ख़ुद) और स्थ (स्थित) से जिसका अर्थ हुआ जो ख़ुद में स्थित हो। मगर सवाल यह उठता है कि स्वयं में स्थित तो हर आदमी रहता है। ऐसे में स्वस्थ से सेहतमंद होने का अर्थ कैसे निकला?
इसके लिए मैंने शब्दकोश टटोले। एक संस्कृत कोश में मुझे स्वस्थ के इतने सारे अर्थ मिले – अपने पर डटे रहना, स्वाश्रित, स्वावलंबी, विश्वस्त, दृढ़, पक्का, स्वतंत्र, अच्छा करने वाला, स्वस्थ, नीरोग, आराम देना, सुखद, सन्तुष्ट, प्रसन्न (देखें चित्र)।
इनसे भी मुझे कुछ पल्ले नहीं पड़ा। फिर मैंने हिंदी शब्दसागर में देखा जिसमें उसका एक अर्थ दिया हुआ था – जो अपनी स्वाभाविक स्थिति में हो (देखें चित्र)। मुझे लगा, स्वस्थ का नीरोग वाला अर्थ इसी से निकला होगा। वह जो अपने स्वाभाविक रूप में स्थित हो, वह स्वस्थ है। हमारा स्वाभाविक रूप यानी वह जो किसी बाह्य या आंतरिक परिवर्तन से दूषित न हुआ हो यानी बीमार न हो। इसी कारण स्वस्थ का मतलब हुआ अच्छी सेहत वाला।
स्वस्थ शब्द पर खोजबीन करते हुए मुझे आयुर्वेद के अनुसार उसका यह अर्थ मिला –
समदोष: समानिश्य समधातुमल क्रिया। प्रसन्नत्येन्द्रियमना: स्वस्था इत्ययिधीयते।।
अर्थ – वात, पित्त एवं कफ – ये त्रिदोष सम हों, जठराग्नि, भूताग्नि आदि अग्नि सम हो, धातु एवं मल, मूत्र आदि की क्रिया विकाररहित हो तथा जिसकी आत्मा, इन्द्रिय और मन प्रसन्न हों, वही स्वस्थ है।
स्वस्थ से ही स्वास्थ्य बना है जिसके अंत में लगे ‘य’ के कारण ही कुछ लोग ‘स्वस्थ’ को भी ‘स्वस्थ्य’ बोलने-लिखने लगते हैं।
आप जानते होंगे कि विशेषणों से भाववाचक संज्ञा बनाने के कई तरीक़े हैं जिनमें एक तरीक़ा ऐसा है जिसमें शब्द के अंत में ‘य’ आ जाता है। लेकिन यह परिवर्तन केवल अंत में नहीं होता, कई बार शुरू में भी होता है। मसलन 1. शुरू में मौजूद अ, ए और औ स्वर दीर्घ हो जाते हैं जबकि इ-ई, उ-ऊ अपना रूप बदल देते हैं। 2. अंतिम ध्वनि स्वरमुक्त हो जाती है और 3. शब्द के अंत में ‘य’ जुड़ जाता है।
कुछ उदाहरण देखें – निराश से नैराश्य, एक से ऐक्य, उदार से औदार्य आदि। इसी नियम से स्वस्थ से जब संज्ञा बनाई गई तो 1. शुरुआती ‘स्व’ ‘स्वा’ में बदल गया, 2. अंत में मौजूद ‘थ’ स्वरमुक्त (थ्) हो गया और 3. अंत में ‘य’ आ गया। बन गया स्वास्थ्य।
स्वास्थ्य से मिलता-जुलता एक शब्द है बाहुल्य जिसका अर्थ है अधिकता। कई लोग ‘बहुल’ और ‘बाहुल्य’ के बीच चक्कर खा जाते हैं कि क्या लिखें। अगर कहीं दुर्घटनाएँ ज़्यादा होती हों तो उस इलाक़े को क्या कहेंगे – दुर्घटना-बहुल या दुर्घटना-बाहुल्य? अगर आपको भी इन दो शब्दों के लेकर भ्रम है कि इस लिंक पर जा सकते हैं जहाँ मैंने बहुल और बाहुल्य की चर्चा की है।