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आलिम सर की हिंदी क्लास शुद्ध-अशुद्ध

176. जब हम शपथ लेते हैं तो सौगंध खाते हैं या सौगंद?

आपमें से अधिकतर लोग सोच रहे होंगे कि यह भला क्या सवाल हुआ। हर कोई जानता है कि हम सौगंध ही खाते हैं, सौगंद नहीं। परंतु सच बात यह है कि आज से सौ-डेढ़ सौ साल पहले लोग सौगंध नहीं, सौगंद खाते थे। यह सौगंद हिंदी में कहाँ से आया और आगे चलकर सौगंध कैसे हो गया, यह जानने में रुचि हो तो आगे पढ़ें।

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175. जोखिम ‘ली’ जाती है या ‘लिया’ जाता है?

ज़िंदगी में हर कोई वक़्त और ज़रूरत पड़ने पर जोखिम लेता ही है। यानी नुक़सान की आशंका होते हुए भी जानते-बूझते हुए ख़तरे का सामना करता है। कभी कोई अपने ड्राइविंग कौशल का दिखावा करने के लिए गाड़ी हवा में दौड़ाता है तो कभी कोई युवती अपने करियर को दाँव पर लगाते हुए भी अपने ग़लीज़ बॉस की शिकायत करती है। दोनों ही मामलों में जोखिम है। और हमारा आज का सवाल बस यही है कि यह जोखिम ली जाती है या लिया जाता है। जोखिम स्त्रीलिंग है या पुल्लिंग?

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174. सही क्या है – तजुर्बा या तज्रुबा?

तजुर्बा एक ऐसा शब्द है जिसका हिंदी में ठीकठाक इस्तेमाल होता है। इसका प्रचलित अर्थ है ‘अनुभव’ मसलन कोई शिक्षक कह सकता है कि मुझे पढ़ाने का तीस साल का तजुर्बा है। लेकिन हिंदी के पुराने शब्दकोशों में तजुर्बा नहीं मिलता, तज्रुबा मिलता है। तो क्या तजुर्बा ग़लत है? आज की चर्चा इसी विषय पर।

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173. लाल क़िले ‘की’ प्राचीर या लाल क़िले ‘के’ प्राचीर?

आज की चर्चा एक ऐसे शब्द के बारे में है जो साल में केवल एक बार बोला-पढ़ा-सुना जाता है लेकिन जब बोला जाता है तो वह मौक़ा होता है बहुत ख़ास। वह शब्द है प्राचीर। हर साल 15 अगस्त को देश के नाम प्रधानमंत्री के संदेश की ख़बर देते समय टीवी चैनलों, वेबसाइटों या अख़बारों में यह वाक्य बोला या लिखा जाता है। सवाल इस प्राचीर से पहले लगने वाले परसर्ग के बारे में है। यह ‘की’ होगा या ‘के’ होगा? प्राचीर स्त्रीलिंग है या पुल्लिंग?

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172. साम-दा*-दंड-भेद में साम के बाद दाम या दान?

हेडिंग में पूछा गया सवाल देखकर आप सोच रहे होंगे कि यह भी क्या सवाल हुआ। यह तो हर कोई जानता है कि ‘साम-दाम-दंड-भेद’ ही होता है, न कि ‘साम-दान-दंड-भेद’। यानी दूसरे नंबर पर दाम है, न कि दान। फ़ेसबुक पर हमारे साथियों ने भी यही जवाब दिया जब हमने उनसे यह सवाल पूछा था। लेकिन क्या यह सही जवाब है? जानने में रुचि हो तो आगे पढ़ें।

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