मेरे एक साथी थे सुभाष चोपड़ा। केमिस्ट्री पढ़ाते थे। एक दिन एक छात्र उनके पास आकर बोला, ‘सर, ये चेमिस्ट्री मुझे समझ में नहीं आती।’ चोपड़ा ने कहा, ‘कैसे समझ में आएगी जब तुम्हें अपने सब्जेक्ट का नाम भी बोलना नहीं आता? Ch का उच्चारण ‘च’ नहीं, ‘क’ होता है। चेमिस्ट्री नहीं, केमिस्ट्री।’ छात्र बोला, ‘मैं समझ गया कोपड़ा सर।’ हँसी आई? नहीं आई। आएगी भी कैसे! यह Ch का मामला ही ऐसा है कि अच्छे से अच्छे हँसमुख इंसान को भी रुला दे। लेकिन रोने से लाभ नहीं होगा। यह जानना होगा कि कहाँ Ch का उच्चारण क्या होता है।