‘ड’ और ‘ड़’ के बारे में एक आसान नियम है कि ड हमेशा शब्द के शुरू में होता है और ‘ड़’ बीच में और आख़िर में। लेकिन कभी-कभी ‘ड’ बीच में और अंत में भी आता है लेकिन कुछ ख़ास स्थितियों में। ऐसा कब होता है, यह जानने के लिए आगे पढ़ें।
‘ड’ और ‘ड़’ के बारे में एक आसान नियम है कि ड हमेशा शब्द के शुरू में होता है और ‘ड़’ बीच में और आख़िर में। लेकिन कभी-कभी ‘ड’ बीच में और अंत में भी आता है लेकिन कुछ ख़ास स्थितियों में। ऐसा कब होता है, यह जानने के लिए आगे पढ़ें।
आज की क्लास छोटी है लेकिन मामला छोटा नहीं है ख़ासकर उन लोगों के लिए जो ‘कि’ और ‘की’ की दुविधा से परेशान हैं। मैंने इसके तीन उपाय बताए हैं जिनमें एक व्याकरण का, दूसरा अंग्रेज़ी का और तीसरा जुगाड़ का है। जिसको जो उपाय समझ में आए, अपना ले।
पिछले दिनों ‘शोले’ का वीरू मेरे सपने में आया और कहने लगा, ‘आलिम जी, सुना है कि आप सबको हिंदी सिखाते हो। हमको भी सिखा दो। हम बसंती को लव लेटर लिखेंगे। बताओ, उसका नाम बसंती लिखें कि बसन्ती?’ मैंने कहा, ‘दोनों सही है – बसंती लिखो चाहे बसन्ती। बाक़ी इस मामले में ज़्यादा जानना हो तो मेरी अगली क्लास पढ़ लेना।’ वीरू इसका कुछ जवाब देता, इससे पहले ही सपना टूट गया। लेकिन मेरे वादे के अनुसार क्लास तैयार है।
गाँधीजी को अधिकतर लोग धार्मिक मानते हैं लेकिन उनकी दिलचस्पी धर्म से अधिक अध्यात्म में थी। हम कह सकते हैं कि वे धार्मिक नहीं, आध्यात्मिक थे, और कई मामलों में तार्किक भी। जी नहीं, मैं आज गाँधीजी के विचारों पर कोई क्लास नहीं ले रहा। मैं केवल बता रहा हूँ कि जब तर्क, धर्म और अध्यात्म जैसे शब्दों के बाद ‘इक’ लगता है तो कैसे शब्द के आरंभ का ‘अ’ स्वर ‘आ’ में बदल जाता है। लेकिन कभी-कभी ऐसा नहीं भी होता। कब होता है, कब नहीं होता, जानने के लिए आगे पढ़ें।
जी नहीं, मेरा मक़सद प्रधानमंत्री के बयानों की आलोचना करना नहीं है, वह काम जिनको करना है, उनको करने दें। आज की मेरी क्लास तो केवल उन कुछ शब्दों पर है जो मोदी जी ही नहीं, देश के 99.99 प्रतिशत हिंदीभाषी ग़लत बोलते हैं – यहाँ तक कि बड़े-बड़े हिंदी अख़बारों-वेबसाइटों और टीवी चैनलों में बड़े-बड़े पदों पर बैठे लोग भी। क्या हैं वे शब्द, जानने के लिए आगे पढ़ें।