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हिंदी क्लास

क्लास 3 – मित्रो, क्या मोदी जी ग़लत बोलते हैं क्या?

जी नहीं, मेरा मक़सद प्रधानमंत्री के बयानों की आलोचना करना नहीं है, वह काम जिनको करना है, उनको करने दें। आज की मेरी क्लास तो केवल उन कुछ शब्दों पर है जो मोदी जी ही नहीं, देश के 99.99 प्रतिशत हिंदीभाषी ग़लत बोलते हैं – यहाँ तक कि बड़े-बड़े हिंदी अख़बारों-वेबसाइटों और टीवी चैनलों में बड़े-बड़े पदों पर बैठे लोग भी। क्या हैं वे शब्द, जानने के लिए आगे पढ़ें।

चलिए, क्लास शुरू करते हुए आपका ध्यान आज के शीर्षक की ओर खींचना चाहूँगा। लिखा है, मित्रो, न मित्रों। इसी तरह अगर मैं कहूँ – बहनो और भाइयो तो वह भी आपको अजीब लगेगा क्योंकि बिना बिंदी के बहनो और भाइयो लिखा कभी आपने देखा नहीं होगा। वैसे भी पिछली क्लास में मैंने ही कहा था कि ओकारांत बहुवचन संज्ञा शब्दों में हर हाल में बिंदी लगती है। साथ में कुछ उदाहरण भी दिए थे — मुकदमों, क़समों, रास्तों, सड़कों, गधों, गायों, सज्जनों, देवियों का। तो फिर आज बहनो और भाइयो क्यों लिखा? क्या अप्रैल महीने में पड़ रही भीषण गर्मी से मैं बौरा गया हूँ?

नहीं बहनो और भाइयो, मैं बौरा नहीं गया हूँ बल्कि मुझे कुछ याद आ गया है। सच कहें तो मुझे याद दिलाया गया है और याद दिलाने का श्रेय जाता है हमारे जानकार पाठक रवींद्र सिंह यादव को जिन्होंने फ़ेसबुक पर मेरे पोस्ट पर कॉमेंट (जी हाँ, कॉमेंट सही है, कमेंट ग़लत है) लिखा था कि कोई बहुवचन ओकारांत शब्द जब संबोधन के रूप में आता है तो उसमें बिंदी नहीं लगती। रवींद्र भाई की बात सही है। इसे यूँ समझाया जा सकता है कि ‘रमेश की बहनों ने उसे राखी बाँधी’ –- यह वाक्य तो ठीक है लेकिन यदि रमेश अपनी बहनों को छेड़ते हुए कहे, ‘मेरी प्यारी बहनो, मैं इस बार तुमलोगों को एक-एक हज़ार के (पुराने) नोट दे रहा हूँ’ तो इसमें बहनो ही लिखा जाएगा, बहनों नहीं। रवींद्र भाई का शुक्रिया!

अब शीर्षक के दूसरे हिस्से पर। जी हाँ, मोदी जब जनता को संबोधित करते हुए ‘बहनों और भाइयों’ या ‘मित्रों’ बोलते हैं तो वे इन शब्दों का ग़लत उच्चारण करते हैं। लेकिन उनका भी दोष नहीं। उनको अब तक कोई आलिम देहलवी या रवींद यादव जैसा व्यक्ति मिला नहीं जो उनको यह ज्ञान देता। चलिए, आगे बढ़ने से पहले मोदीजी का नोटबंदी वाला भाषण सुन लीजिए जहाँ वह 14 मिनट और 21 सेकंड पर नोटबंदी का ऐलान करने से पहले कहते हैं –- बहनों और भाइयों…

आपने सुना। मोदीजी ने बहनों और भाइयों कहा। लेकिन मोदीजी का काम शब्दों का सही-सही उच्चारण करना नहीं, बल्कि सही-सही काम करना है। इसलिए वे यदि संबोधन करते समय ‘बहनो और भाइयो’ की जगह ‘बहनों और भाइयों’ या ‘मित्रो’ की जगह ‘मित्रों’ बोलें तो हमें परेशान नहीं होना चाहिए। परंतु जिनका हिंदी में लिखने-बोलने का काम है जैसे हिंदी के छात्र, शिक्षक, कवि, लेखक, संपादक, ऐंकर, रिपोर्टर -– उनको तो सही लिखना और बोलना ही चाहिए। नीचे कुमार विश्वास का ट्वीट देखिए – वे कवि हैं और अतीत में हिंदी के शिक्षक भी रहे हैं, फिर भी दोस्तो को दोस्तों लिख रहे हैं।

वैसे मानना पड़ेगा फ़िल्म इंडस्ट्री के पुराने गीतकारों और गायकों को। उन्होंने जब भी ऐसे गाने लिखे या गाए जिसमें किसी को संबोधित किया गया है तो गीतकार ने सही लिखा और गायक-गायिका ने सही गाया। मसलन कवि प्रदीप का लिखा, सी. रामचंद्र का संगीतबद्ध किया और लता मंगेशकर द्वारा गाया हुआ अमर गीत – ‘ऐ मेरे वतन के लोगो, ज़रा आँख में भर लो पानी’ में लताजी ने ‘लोगो’ कहा है, ‘लोगों’ नहीं। आप भी सुनिए।

एक और गीत है –- ‘कर चले हम फ़िदा जान-ओ-तन साथियो’ कैफ़ी आज़मी का लिखा और मदनमोहन का संगीतबद्ध किया हुआ। इसमें भी रफ़ी साहब ने ‘साथियो’ गाया है, ‘साथियों’ नहीं। यह गाना भी सुन लें।

(ये दोनों गीत जब भी मैं सुनता हूँ तो आँखों से टप-टप आँसू झरने लगते हैं। इन्हें सुनते हुए आपकी भी आँखों में भी आँसू आएँ तो उनको बहने दीजिएगा, रोकिएगा नहीं।)

आइए, आज के सबक़ को दो-तीन उदाहरणों से अच्छी तरह से समझ लेते हैं।

  • मुहल्ले के आवारा कुत्तों ने पिछले एक सप्ताह में दस लोगों पर हमला किया। (यहाँ कुत्तों ठीक है क्योंकि यह संज्ञा है, बहुवचन है और ओकारांत है।)
  • कुत्तो, मैं तुम्हारा ख़ून पी जाऊँगा। (यहाँ कुत्तो होगा क्योंकि हमारा पंजाबी हीमैन गुंडों को कुत्तों के नाम से पुकारकर बता रहा है कि वह उसके ख़ून की लस्सी बनाकर पीना चाह रहा है।)
  • आजकल दोस्तों का भरोसा नहीं रहा, कब कौन दग़ा दे जाए! (यहाँ दोस्तों होगा। कारण वही — संज्ञा, बहुवचन, ओकारांत।)
  • मेरे अज़ीज़ दोस्तो, क्या तुमलोग अपने यार के नाम पर पाँच सौ रुपये भी क़ुरबान नहीं कर सकते? (यहाँ दोस्तो होगा क्योंकि ‘मुफ़्त का चंदन, घिस मेरे नंदन’ में यक़ीन रखनेवाला एक फटेहाल बंदा अपने मित्रों से पैसों की गुहार लगा रहा है।)

हमारी पाठिकाओं को शिकायत हो सकती है कि मैंने ऊपर के दोनों उदाहरण पुल्लिंग के ही दिए हैं -– कुत्तों और दोस्तों के। सो तीसरा उदाहरण स्त्रीलिंग वाला दे देता हूँ।

  • लता की सहेलियों ने उसकी बर्थडे पार्टी में ख़ूब धमाल मचाया। (यहाँ सहेलियों होगा क्योंकि यह संज्ञा है, बहुवचन है और ओकारांत है।)
  • मेरी अच्छी सहेलियो, मेरी बर्थडे पार्टी में मेरे फ़िऑन्से पर डोरे मत डालना। (यहाँ सहेलियो होगा क्योंकि लड़की अपनी सहेलियों को संबोधित कर रही है।)

ऊपर के उदाहरण में फ़िऑन्से की जगह मंगेतर भी लिखा जा सकता था लेकिन मैंने जानबूझकर यह अंग्रेज़ी (मूल रूप से फ़्रेंच) शब्द लिखा ताकि हिंदी के साथ-साथ थोड़ी-सी इंग्लिश क्लास भी हो जाए और आपमें से जिनको न मालूम हो, उनको पता चल जाए कि FIANCÉ का उच्चारण फ़ियांस नहीं, फ़िऑन्से होता है। यह भी जान लें कि मंगनी हो चुकी लड़की के लिए जो FIANCÉE शब्द इस्तेमाल होता है, उसका उच्चारण भी फ़िऑन्से ही होता है, फ़ियांसी नहीं।

यानी मंगेतर लड़का हो या लड़की, उसके लिए अंग्रेज़ी शब्द का उच्चारण एक ही है — फ़िऑन्से हालाँकि स्पेलिंग दोनों की अलग-अलग है – FIANCÉ और FIANCÉE

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6 replies on “क्लास 3 – मित्रो, क्या मोदी जी ग़लत बोलते हैं क्या?”

क्या ये जुमला ठीक है ,” दोस्तों ने दोस्तो को बुलाया । “

नहीं। यहाँ दोनों ही मामलों में दोस्तों ही होगा। दोस्तो, साथियो, मित्रो, भाइयो आदि तभी होगा जब आप किसी को अड्रेस करें, एक तरह से पुकारें। मसलन – भाइयो और बहनो, मैं आपसे कहना चाहता हूँ या दोस्तो, मुझे आपकी मदद चाहिए।

महोदय कृपया स्प्ष्ट करने की कृपा करें कि
सरकारी कार्यालयों में पत्राचार करते समय किसी अधीनस्थ कर्मचारी को कोई कार्य करने हेतु “निदेशित” किया जाएगा या “निर्देशित”

उदाहरण:- श्री अ आपको तत्काल सूचना उपलब्ध कराने हेतु निदेशित किया जाता है

या

श्री अ आपको तत्काल सूचना उपलब्ध कराने हेतु निर्देशित किया जाता है

मैंने सरकारी दफ़्तरों में काम नहीं किया है लेकिन सरकारी दस्तावेज़ों में निर्देशित ही लिखा जाता है।

आदरणीय महोदय,
सचिवालय स्तर से निर्गत पत्रों में “निदेश” लिखते हैं किंतु अन्य कार्यालयों में “निर्देश” लिखते है। जबकि आपके एक लेख में मैने पढ़ा था कि फिल्मों, नाटकों में निर्देशक होते हैं, उससे “निर्देश” शब्द आया और सरकारी अथवा प्राइवेट कार्यालयों में निदेशक होते हैं, उससे “निदेश” शब्द आया। मेरे द्वारा निदेश शब्द का प्रयोग करने पर कुछ लोगों द्वारा आपत्ति की गई कि “निदेश” केवल से निर्गत पत्रों में ही लिखते हैं। हालांकि उनका तर्क समझ से परे है क्योंकि किसी शब्द विशेष को किसी कार्यालय या स्थान विशेष में प्रयोग करने का नियम विचित्र लगता है।
अतः आपसे अनुरोध है कि कृपया इस विषय पर ज्ञानवर्धन की कृपा करें। धन्यवाद🙏

नमस्ते। जैसा कि उस लेख में मैंने बताया था, संस्कृत में निदेश और निर्देश दोनों हैं और दोनों का तक़रीबन एक ही अर्थ है। इन्हीं निदेश और निर्देश में ‘क’ प्रत्यय जोड़कर हिंदी में निर्देशक और निदेशक शब्द बनाए गए हैं जो कि Director शब्द के अनुवाद के तौर पर इस्तेमाल होते हैं। अब चूँकि कंपनियों और सरकार में पदासीन डायरेक्टरों का काम अलग होता है और फ़िल्म व नाटक के डायरेक्टरों का काम अलग, इसलिए कंपनी-सरकार के मामले में निदेश/निदेशक और मनोरंजन की दुनिया में निर्देशक चलता है। लेकिन मैंने देखा है कि अलग-अलग सरकारों में भी इस शब्द को लेकर कोई एकरूपता नहीं है। कहीं निदेश और निदेशक चलता है तो कहीं निर्देश और निर्देशक चलता है। यहाँ तस्वीर लगाने की सहूलियत नहीं है वरना मैं आपको उनके स्क्रीनशॉट दिखाता। तकनीकी और व्याकरणिक तौर पर दोनों शब्द सही हैं और कहीँ भी प्रयुक्त हो सकते हैं।

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