‘भौं’ सही है या ‘भौंह’? जब इसके बारे में एक फ़ेसबुक पोल किया गया तो 90% लोगों ने भौंह के पक्ष में राय दी। भौं को सही बताने वालों की तादाद केवल 1% रही। शेष 9% ने दोनों को सही बताया। क्या वाक़ई भौंह सही है और भौं ग़लत है? जानने में रुचि हो तो पढ़ें।
फ़ेसबुक पोल में भले ही 90% लोगों ने भ़ौंह को सही और भौं को ग़लत बताया हो मगर सच्चाई इस पोल परिणाम से काफ़ी अलग है क्योंकि हिंदी के प्रामाणिक शब्दकोशों के अनुसार ‘भौं’ भी उतना ही सही है जितना ‘भौंह’। कोशों में दोनों का एक ही स्रोत दिया हुआ है – संस्कृत का ‘भ्रू’ (देखें चित्र)।
यानी ऐसा नहीं है कि ‘भौं’ से ‘भौंह’ बना या ‘भौंह’ से ‘भौं’ बना। शब्दकोशों के अनुसार ये दोनों शब्द स्वतंत्र रूप से संस्कृत के ‘भ्रू’ से बने हैं। लेकिन मन में जिज्ञासा होती है कि ऐसा हुआ तो कैसे? कैसे एक शब्द में ‘ह’ आ गया और दूसरे में नहीं?
हम सब जानते हैं कि संस्कृत और हिंदी के बीच कई हज़ार साल का फ़ासला रहा है और ‘भौं’ व ‘भौंह’ जैसे शब्दों को हिंदी में प्रवेश करने से पहले अन्य भाषाओं के पुल पार करने पड़े हैं जिनमें से प्रमुख है प्राकृत। इसलिए हमें पहले यह देखना होगा कि प्राकृत में भौं/भौंह के लिए कौनसे शब्द चलते थे।
प्राकृत ग्रंथों में इसके लिए जो शब्द मिलते हैं, वे हैं – भमया, भमुह, भमुहा, भुम, भुमगा, भुमया, भुमा और भू। (स्रोत)
अब इनमें से किस शब्द से ‘भौं’ या ‘भौंह’ शब्द बने होंगे, यह मेरे जैसे सामान्य व्यक्ति के लिए कहना मुश्किल है। लेकिन एक अनुमान तो लगाया ही जा सकता है।
‘भौं’ और ‘भौंह’ में ‘भ’ के अलावा जो दो ध्वनियाँ मौजूद हैं, वे हैं 1. अनुनासिक ध्वनि जो दोनों शब्दों में है और 2. ‘ह’ जो केवल ‘भौंह’ में है। हमें खोजना है कि क्या ये ध्वनियाँ इन प्राकृत शब्दों में हैं।
हम पाते हैं कि इन प्राकृत शब्दों में एक के अलावा सभी शब्दों में नासिक्य ध्वनि ‘म’ है और दो शब्दों (भमुह और भमुहा) में ‘ह’ भी है। सो हो सकता है कि भुम, भुमा या भुमया से ‘भौं’ बना हो और भमुह या भमुहा से ‘भौंह’।
परंतु एक, बल्कि दो प्रश्न इस चर्चा में अभी भी बाक़ी रह जाते हैं। पहला यह कि जब हिंदी में ‘भौं’ और ‘भौंह’ दोनों हैं तो हमारे पोल में ‘भौं’ के समर्थकों की संख्या इतनी कम क्यों रही। दूसरे शब्दों में ‘भौं’ के मुक़ाबले ‘भौंह’ इतना अधिक प्रचलित क्यों है?
इसके पीछे मुझे एक ही वजह दिखती है। वह यह कि हमारी आँखें दो हैं और ‘भौंओं’ की संख्या भी दो है। इसलिए जब भी इसका ज़िक्र होगा तो बहुवचन में ही होगा। लेकिन यह ‘भौंओं’ लिखना तो आसान है मगर बोलना थोड़ा मुश्किल है क्योंकि ‘औं’ के ठीक बाद सजातीय ‘ओं’ स्वर आ रहा है।
इसके मुक़ाबले ‘भौंह’ का बहुवचन में प्रयोग सरल है। ‘भौंहें’ और ‘भौंहों’। हो सकता है, इसी कारण ‘भौंह’ अधिक प्रचलित हो गया हो।
भौं/भौंह के लिए एक और शब्द चलता है ‘भवँ’। यह ‘भौं’ का ही एक परिवर्तित रूप लगता है। ‘भवँ’ का बहुवचन बनाना भी आसान है – ‘भवें’ और ‘भवों’।
दूसरा प्रश्न यह कि संस्कृत के ‘भ्रू’ शब्द में ‘म्’ की कोई ध्वनि नहीं है, फिर उसी से उपजे प्राकृत शब्दों में ‘म’ कहाँ से आ गया। यह सही है कि ‘भ्रू’ भ्रम् धातु से बना है लेकिन प्राकृत के शब्द ‘भ्रम्’ धातु से नहीं, ‘भ्रू’ से बने होंगे। यह ‘भ्रू’ प्राकृत में भुमा या भुमहा कैसे बना, यह मेरे लिए एक पहेली है जिसका जवाब यदि आप दे सकते हैं तो दें। मैं भी खोजने की कोशिश करूँगा।