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एकला चलो

ज़िक्र उस ख़त का लबों पर तेरे, हो गए बख़्श गुनाह सब मेरे

1977 का दिसंबर का महीना था जब मैंने समिता को पत्र लिखकर बताया था कि मैं उससे कितना प्यार करता हूँ। उसने पत्र का कोई जवाब नहीं दिया। हाँ, एक दोस्त से अवश्य कहा था कि वह नहीं जानती थी कि मैं इतना गिरा हुआ लड़का हूँ। 33 साल बाद उसी समिता से फिर से मिलना हुआ संयोग से दिसंबर के ही महीने में और पता चला कि उसे अभी भी सबकुछ याद था…

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