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एकला चलो

तेरे ख़ुशबू में बसे ख़त मैं जलाता कैसे…

‘चौदहवीं का चाँद’, ‘संगम’, ‘एक बार मुस्कुरा दो’, ‘सागर’ और ‘चाँदनी’ जैसी ढेरों फ़िल्में हिंदी में बनी हैं जिनमें दो दोस्त एक ही लड़की से प्यार करते हैं। कहानी की ज़रूरत के अनुसार उन दोनों में से एक को अपने प्यार की और अक्सर अपनी जान की भी क़ुर्बानी देनी पड़ती है। सालों पहले मेरे साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ था हालाँकि हिंदी फ़िल्मों के उलट हम दो दोस्तों में से किसी को अपने प्राणों की आहुति नहीं देनी पड़ी थी। हमारे क़िस्से की नायिका भी दोनों में से किसी को नहीं मिली।

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एकला चलो

उसने कहा था, तुम तो बहुत गिरे हुए निकले…

चंद्रधर शर्मा गुलेरी की कहानी ‘उसने कहा था’ में लहना सिंह को आजीवन याद रहता है कि किशोरावस्था में वह जिस लड़की को ‘तेरी कुड़माई हो गई’ कहकर छेड़ा करता था, उसने सालों बाद मिलने पर क्या वचन माँगा था। लहना सिंह अपनी जान देकर भी उस वचन को निभाता है। मेरी किशोरावस्था में भी ‘उसने कहा था’ वाला क्षण आया था। लेकिन उसने मुझसे कोई वचन नहीं माँगा था बल्कि बहुत ही शिकायती लहजे में कहा था – तुम तो बहुत गिरे हुए निकले, नीरेंद्र। बरसों-बरस कैसे मैं इस कलंक को ढोता रहा और फिर कैसे उसी लड़की की बदौलत इस कलंक से मुक्त हुआ, इसकी रोचक दास्तान आज के ब्लॉग में है। रुचि हो तो पढ़ें।

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