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क्लास 5 – बसंती और बेवफ़ा प्रेमी से सीखें बिंदी का उच्चारण

पिछले दिनों ‘शोले’ का वीरू मेरे सपने में आया और कहने लगा, ‘आलिम जी, सुना है कि आप सबको हिंदी सिखाते हो। हमको भी सिखा दो। हम बसंती को लव लेटर लिखेंगे। बताओ, उसका नाम बसंती लिखें कि बसन्ती?’ मैंने कहा, ‘दोनों सही है – बसंती लिखो चाहे बसन्ती। बाक़ी इस मामले में ज़्यादा जानना हो तो मेरी अगली क्लास पढ़ लेना।’ वीरू इसका कुछ जवाब देता, इससे पहले ही सपना टूट गया। लेकिन मेरे वादे के अनुसार क्लास तैयार है।

चलिए, वीरू की इच्छा का सम्मान करते हुए आज हम बात करते हैं पाँच उच्चारणों वाली बिंदी की। आप कहेंगे कि यह क्या फिज़ूल की बात है क्योंकि बिंदी का तो एक ही उच्चारण होता है। लेकिन नहीं। शायद आपने ध्यान न दिया हो मगर इस बिंदी के पाँच उच्चारण हैं। व्याकरण की भाषा में इसे बिंदी नहीं, अनुस्वार कहते हैं मगर सोचिए, एक छोटा-सा डॉट और इतना बड़ा नाम। हम तो इसे बिंदी ही कहेंगे। वह कविता सुनी है ना – हिंदी की चिंदी उड़ती थी, बिंदी कौन लगाता, भारत के साहित्यगगन में जो हरिचंद न आता। यह कविता किसकी लिखी हुई है, मुझे नहीं मालूम लेकिन है यह भारतेंदु हरिश्चंद्र के बारे में जिनका लिखा मज़ेदार नाटक ‘अंधेर नगरी…’ आपने नहीं पढ़ा हो तो अवश्य पढ़ें। इस लिंक पर वह मिल जाएगा।

किसी शब्द में बिंदी कहाँ लगेगी, इसके बारे में एक बहुत ही आसान फ़ॉर्म्युला है लेकिन उसे जानने से पहले हम जानेंगे कि इस बिंदी के कौन-कौनसे उच्चारण हैं।

बिंदी पर यह क्लास बिंदी शब्द से ही शुरू करते हैं जिसमें ख़ुद एक बिंदी लगी हुई है ‘बि’ के साथ। इस बिंदी का उच्चारण क्या है? आधा न। यानी हम इसे यूँ भी लिख सकते हैं – बिन्दी। सही है न?

लेकिन क्या हर शब्द में बिंदी का यही उच्चारण है? चलिए, कुछ शब्दों से समझते हैं। कंघा, पंचम, ठंडा, चंदन, कंपन।

कंघा बोलकर देखिए। क्या यह कन्घा जैसा उच्चारण है — क+न्+घा? चलिए, तुलना करने के लिए एक और शब्द लेते हैं — कंधा। कंघा और कंधा एक-एक कर बोलिए (शर्माइए नहीं, बोलकर देखिए। आपको कोई देख नहीं रहा है। और देख भी रहा है तो क्या है! आप हिंदी सीख रहे हैं, किसी को गाली तो नहीं दे रहे हैं!)। क्या दोनों में बिंदी का एक ही उच्चारण है? आपने देखा होगा कि कंधा में जहाँ न् का उच्चारण है, वहीं कंघा में ‘कुछ और’ है। यह ‘कुछ और’ क्या है, यही हम जानेंगे लेकिन एक और उदाहरण के बाद।

शब्द है संबंध। इसमें दो बिंदियाँ है। क्या इन दोनों बिंदियों का एक ही उच्चारण है? बोलकर देखिए। चलिए, लिखकर देखते हैं। यदि उच्चारण के आधार पर इसे लिखें तो इसे ऐसे भी लिख सकते हैं — स+म्+ब+न्+ध यानी सम्बन्ध। यहाँ पहली बिंदी का उच्चारण आधा म (म्) है और दूसरी बिंदी का उच्चारण आधा न (न्) है। यानी एक ही शब्द में बिंदी के दो-दो उच्चारण। लेकिन जनाब, अभी तो आपने आधी ही कहानी सुनी है। जैसा कि मैंने ऊपर बताया, बिंदी के दो नहीं, बल्कि पाँच-पाँच उच्चारण हैं बिल्कुल द्रौपदी के पाँच पतियों की तरह। और किसी भी शब्द में लगी बिंदी का उच्चारण क्या होगा, वह निर्भर करता है इसपर कि उसके बाद आनेवाला अक्षर क्या है और किस वर्ग का है।

वर्ग नहीं जानते? तो पहले वर्ग समझ लेते हैं। हिंदी की जो वर्णमाला है, उसमें स्वर (यानी अ, आ, इ, ई आदि) और व्यंजन (क, च, त आदि) को बोलते समय केवल कंठ यानी गले का उपयोग नहीं होता, बल्कि हम होंठ, जीभ, दाँत आदि का भी इस्तेमाल करते हैं और उसी के आधार पर उनके वर्ग या ग्रूप (GROUP का सही उच्चारण ग्रूप है, ग्रुप नहीं) बने हुए हैं। व्यंजनों में क, ख, ग, घ और ङ कंठ या गले से बोले जाते हैं – उनको बोलते समय हमें अपनी जीभ या दाँत का स्पर्श नहीं करना पड़ता (बोलकर देखिए)। लेकिन प, फ, ब, भ और म बोलते समय हमारे होंठ एक-दूसरे को किस करते हैं (बोलकर देखिए)। इसी तरह त, थ, द, ध और न बोलते समय जीभ ऊपरी दाँतों के भीतरवाले हिस्से से सट जाती है (बोलकर देखिए)। सो इसी आधार पर ये ग्रूप या वर्ग बनाए गए हैं। नीचे देखें ये वर्ग और उनके सदस्य।

  • कंठ से बोले जानेवाले व्यंजन हैं क ख ग घ ङ और इस वर्ग को कहा जाता है कवर्ग।
  • जीभ और तालू* के स्पर्श से बोले जानेवाले व्यंजन हैं च छ ज झ ञ और इस वर्ग को कहा जाता है चवर्ग।
  • जीभ और मूर्धा* के स्पर्श से बोले जानेवाले व्यंजन हैं ट ठ ड ढ ण और इस वर्ग को कहा जाता है टवर्ग।
  • जीभ और दाँत के स्पर्श से बोले जानेवाले व्यंजन हैं त थ द ध न और इस वर्ग को कहा जाता है तवर्ग।
  • दोनों होंठों के स्पर्श से बोले जानेवाले व्यंजन हैं प फ ब भ म और इस वर्ग को कहा जाता है पवर्ग।

*(यदि आप जानना चाहें कि तालू और मूर्धा किस चिड़िया का नाम है तो शब्दों के साथ दिए गए लिंकों पर क्लिक करें। उससे भी आसान उपाय यह है कि त और ट बोलें। त बोलते समय जीभ मुँह के जिस हिस्से को छूती है, वह तालू है और ट बोलते समय जीभ मुँह के जिस हिस्से को छूटी है, वह मूर्धा है।)

इनके अलावा जो अन्य व्यंजन हैं जैसे य, र, ल, व, श, ष, स और ह — उनका अपना कोई वर्ग नहीं है मगर रिश्ते में ये किसी-न-किसी के बाप न सही, चचेरे भाई ज़रूर लगते हैं। जैसे ‘य’ औ ‘श’ तालू के स्पर्श से बोले जाते हैं इसलिए चवर्ग से मिलते-जुलते हैं लेकिन ‘य’ और ‘श’ की ध्वनि बोलते समय जीभ तालू को उतना ज़्यादा नहीं छूती जितना ज़्यादा ‘च, छ, ज’ आदि के मामले में छूती है (बोलकर देखिए)। इसी तरह ‘ल’ और ‘स’ भी दाँतों के स्पर्श से बोले जाते हैं लेकिन यह स्पर्श उतना घना नहीं होता जितना तवर्ग वाले अक्षरों का होता है (बोलकर देखिए)। इसीलिए मैंने इन्हें अपने संबंधित ग्रूप का चचेरा भाई कहा है, सगा नहीं। नीचे इन व्यंजनों का रिश्ता दिखाया गया है।

  • य और श (तालव्य) – चवर्ग के साथ।
  • र और ष (मूर्धन्य) – टवर्ग के साथ।
  • ल और स (दंत्य) – तवर्ग के साथ।
  • व (दंतोष्ठ्य – दाँत और होंठ दोनों) – पवर्ग के साथ।
  • ह (कंठ्य) – कवर्ग के साथ।

वर्ग समझ लिए तो हम आते हैं मूल विषय पर कि किसी बिंदी का उच्चारण क्या होगा। बिंदी का उच्चारण निर्भर करता है उस अक्षर पर जो बिंदी वाले अक्षर के बाद आता है। यानी कंघा में बिंदी का उच्चारण निर्भर करेगा ‘घ’ पर और कंपन में करेगा ‘प’ पर। नियम यह है कि बिंदी के बादवाला अक्षर जिस वर्ग का है, उस वर्ग का पाँचवाँ अक्षर जो होगा, वही उच्चारण बिंदी का भी होगा लेकिन आधा। इसीलिए इसे पंचमाक्षर का नियम कहते हैं।

नहीं समझ में आया? चलिए, इसे यूँ समझते हैं कि एक आदमी अंडा लेकर चल रहा है (अंडा बिंदी है और आदमी वह अक्षर जिसपर बिंदी लगी है)। उस आदमी के सामने एक और आदमी है लेकिन वह किस प्रदेश का है और कौनसी भाषा बोलता है, यह हमें नहीं पता। अब वह आदमी अंडा उस आदमी पर फेंक देता है तो दूसरा आदमी मुड़कर अपनी भाषा में चिल्लाता है – कौन है बे @#%&!!! अगर वह आदमी बंगाली होगा तो बोलेगा – কে রে (के रे), गुजराती होगा तो बोलेगा – કોણ છે (कोण छे)? मराठी होगा तो बोलेगा – कोण आहे? और इसी तरह सभी अपनी भाषा में बोलेंगे और साथ में गालियाँ भी देंगे जिन्हें मैंने वैधानिक कारणों से टंकित नहीं किया है।

यानी अंडा फेंकने के बाद आवाज़ कौनसी आएगी, यह उस सामनेवाले आदमी पर निर्भर करता है। यहाँ भी बिंदी की ध्वनि उस अगले अक्षर पर निर्भर करती है और इसपर कि उस अगले अक्षर के वर्ग का पंचमाक्षर या पाँचवाँ अक्षर क्या है।

आइए, अब शुरुआत में दिए गए उदाहरण फिर से लेते हैं। पहला है – कंघा। बिंदी का उच्चारण ‘कं’ के बादवाले अक्षर यानी ‘घ’ पर निर्भर है और ‘घ’ कवर्ग में है जिसका पाँचवाँ अक्षर है ङ – क ख ग । सो ‘कंघा’ में बिंदी का उच्चारण होगा आधा ङ यानी ङ्।

इसी तरह कंपन में बिंदी का उच्चारण निर्भर करेगा ‘कं’ के बादवाले अक्षर यानी ‘प’ पर जो पवर्ग का सदस्य है और जिसका पाँचवाँ अक्षर है म — फ ब भ । सो ‘कंपन’ में बिंदी का उच्चारण होगा आधा म या म्।

अब इस नियम को संबंध पर आज़माकर देखिए। पहली बिंदी का उच्चारण ‘सं’ के बादवाले अक्षर यानी ‘ब’ पर और दूसरी बिंदी का उच्चारण ‘बं’ के बादवाले अक्षर यानी ‘ध’ पर निर्भर है। ‘ब’ पवर्ग का सदस्य है जिसका पंचमाक्षर है ‘म’ – प फ । इसलिए पहली बिंदी का उच्चारण हो रहा है आधा म (यानी म्)। ‘ध’ तवर्ग का सदस्य है जिसका पंचमाक्षर है ‘न’ — त थ द । इसलिए दूसरी बिंदी का उच्चारण है आधा न यानी न्। सही उच्चारण हुआ सम्बन्ध।

तो आप समझ गए बिंदी के उच्चारण का नियम? जहाँ भी बिंदी देखें, सबसे पहले (1) उसका अगला अक्षर देखें कि वह किस वर्ग का है और फिर (2) उसके पाँचवें अक्षर का जो उच्चारण हो, वही उच्चारण करें।

अब प्रश्न यह है कि यदि किसी शब्द में बिंदी के बाद ऐसा अक्षर हो जो कि इन पाँच वर्गों में से किसी में न आता हो जैसे  य, र, ल, व, श, ष, स, और ह तो उन मामलों में बिंदी का उच्चारण क्या होगा। इसका जवाब बहुत आसान है। हमने ऊपर देखा कि ये व्यंजन भी किसी न किसी वर्ग के सदस्यों के चचेरे भाई हैं। सो जिस वर्ग के सदस्यों के चचेरे भाई हैं, उसी के पाँचवें अक्षर से मिलता-जुलता इनमें उच्चारण होगा।

चलिए, इसे उदाहरणों से समझते हैं। नीचे मैंने ‘सं’ के बाद य, र, ल, व, श, स और ह से बने शब्द लिखे हैं।

संयम, संरक्षण, संलग्न, संवाद, संशय, संसार और संहार। इनका उच्चारण हर जगह अलग-अलग होगा। नियमानुसार संयम व संशय में ञ् जैसा, संरक्षण में ण् जैसा, संलग्न व संसार में न् जैसा, संहार में ङ् जैसा और संवाद में म् जैसा उच्चारण होना चाहिए। क्यों? क्योंकि ये जिन वर्गों के चचेरे भाई हैं, उनका पंचमाक्षर वही है। लेकिन डॉ. वासुदेव नंदन प्रसाद का मानना है कि पाँच वर्गों से अलग इन सात अक्षरों में य, व, और ह के अलावा बाक़ी सभी वर्णों से पहले लगनेवाली बिंदी का उच्चारण ‘न’ जैसा होना चाहिए। यानी संरक्षण का उच्चारण सन्+रक्षण जैसा, संलग्न का सन्+लग्न जैसा, संशय का सन्+शय जैसा और संसार का उच्चारण सन्+सार जैसा होना चाहिए। इसकी वजह यह है कि आधे ञ् और ण् का उच्चारण अधिकतर मामलों में न् जैसा ही होता है जैसे मंजन (मञ्जन) और अंडा (अण्डा)।

य, व और ह की इस तिकड़ी जिससे पहले बिंदी आए तो उसका उच्चारण ‘न’ नहीं होगा, इसको याद रखने के लिए आप वाह्य को याद रखें। वाह्य का अर्थ है बाहर और चूँकि ये तीनों भी बाक़ी टीम से बाहर हैं, इसलिए वाह्य इनके स्वभाव के अनुकूल है और इसमें ये तीनों वर्ण भी आ जाते हैं।

यहाँ एक और बात ध्यान में रखनेवाली है। पाँच वर्गोंवाले जो 25 अक्षर हैं, उनके मामले में हम बिंदी का भी उपयोग कर सकते हैं और आधे पंचमाक्षर का भी (जैसे संदेह भी लिख सकते हैं और सन्देह भी)। लेकिन पाँच वर्गों से बाहर के ये जो अक्षर हैं यानी ये चचेरे भाई, उनके मामले में आपको बिंदी का ही उपयोग करना होगा। यानी भले ही मैं कहूँ कि अहिंसा का उच्चारण अहिन्सा जैसा है मगर उसे अहिन्सा न लिखें – हमेशा अहिंसा लिखें। इसी तरह सन्सार न लिखें, हमेशा संसार लिखें, सम्वाद न लिखें, हमेशा संवाद लिखें।

अंग्रेज़ी में अहिंसा का लिप्यांतर – AHIMSA

मतभेद और भी हैं। अब अहिंसा को लें। स दंतस्य वर्ग से जुड़ा हुआ है जिसका अंतिम वर्ण न है। सो अहिंसा का उच्चारण अहिन्सा जैसा होना चाहिए जिसे अंग्रेज़ी में हम AHINSA लिख सकते हैं। लेकिन मैंने अहिंसा को अंग्रेज़ी में कई ग्रंथों और लेखों में AHIMSA लिखा देखा है। इसकी वजह यह है कि संस्कृत में अनुस्वार का उच्चारण म् ही माना जाता है। सो संस्कृत में अहिंसा का उच्चारण अहिम्सा होगा और हिंदी में अहिन्सा।

अब हम एक ऐसी समस्या के बारे में बात करेंगे जो अंग्रेज़ी शब्दों के साथ आती है। अंग्रेज़ी में बिंदी वाले उच्चारण को व्यक्त करने के लिए केवल दो अक्षर हैं – M और N और इसी से वे पाँचों उच्चारण करते हैं। लेकिन उन शब्दों को हिंदी में लिखते समय हमें सावधानी बरतनी होगी कि कहाँ बिंदी लगाएँ और कहाँ नहीं। ध्यान रखना है शब्द के मूल उच्चारण का और देखना है कि बिंदी लगाने के बाद उसका उच्चारण हमारे पंचमाक्षर के नियम से पूरी तरह मेल खाए। यदि मेल न खाता हो तो बिंदी न लगाकर आधा अक्षर लगाएँ।

अपनी बात समझाने के लिए मैं नीचे दो शब्द दे रहा हूँ जिनमें पहले अक्षर पर बिंदी लगाई है। इंफ़ॉर्म (INFORM) और कंफ़र्ट (COMFORT)। ये दोनों अंग्रेज़ी के शब्द हैं और हम अकसर लोगों को देखते हैं इसी तरह से लिखते हुए – इंफ़ॉर्म और कंफ़र्ट। लेकिन क्या उनको ऐसा लिखना सही है? आइए, जाँच करते हैं।

पहला शब्द है इंफ़ॉर्म। इं के बाद है फ़ जो फ का ही जुड़वाँ रूप है (फ़ के चेहरे पर प्यारा-सा तिल है, फ के चेहरे पर नहीं)। अब चूँकि पवर्ग का सदस्य है और उसका पंचमाक्षर म है सो इंफ़ॉर्म में लगी बिंदी का उच्चारण हुआ इम्फ़ॉर्म। लेकिन क्या यह उसका सही उच्चारण है? स्पेलिंग देखिए – INFORM. शब्द में N है, M नहीं। सो सही उच्चारण तो होगा इन्फ़ॉर्म लेकिन बिंदी लगाने से उसका उच्चारण ग़लत हो गया – इम्फ़ॉर्म। इसलिए यहाँ बिंदी नहीं लगेगी। इसे इन्फ़ॉर्म ही लिखना उचित है।

अगला शब्द है कंफ़र्ट। यहां कं के बाद है फ़ जिसका जुड़वाँ भाई फ पवर्ग का सदस्य है और उसका पंचमाक्षर है म। सो इसे बोलेंगे कम्फ़र्ट। क्या यह सही है? स्पेलिंग से चेक करते हैं – COMFORT. हाँ, इसमें M है और उच्चारण भी म् ही हो रहा है। सो यहाँ बिंदी लगाना ठीक है। आप कंफ़र्ट लिख सकते हैं।

Infosys को इंफ़ोसिस लिखने पर उसका उच्चारण इम्फ़ोसिस हो जाएगा जो कि ग़लत है।

यानी अंग्रेज़ी के शब्दों में बिंदी लगाते समय चेक करें कि स्पेलिंग में N है या M। यदि शब्द में N हो और उसके बाद पवर्ग के सदस्यों – प (P), फ़ (Ph/F), ब (B), म (M) और व (V) वाली ध्वनियों के लेटर्ज़ हों तो बिंदी न लगाकर आधे या पूरे न का इस्तेमाल करें वरना उच्चारण ग़लत हो जाएगा। नीचे ऐसे कुछ शब्द देखें।

INPUT, CONFIRM, INBUILT, UNMUTE और INVITE। इनका उच्चारण है – इन्पुट, कन्फ़र्म, इन्बिल्ट, अन्म्यूट और इन्वाइट। यदि इनको बिंदी लगाकर इंपुट (इम्पुट), कंफ़र्म (कम्फ़र्म), इंबिल्ट (इम्बिल्ट), अंम्यूट (अम्म्यूट) और इंवाइट (इम्वाइट) लिखा जाए तो उनका उच्चारण ग़लत हो जाएगा।

दो और शब्द हैं जो बिंदी के ग़लत इस्तेमाल के शिकार हैं मगर नादानी के चलते अख़बारों और वेबसाइटों पर बहुत चल रहे हैं। वे हैं INFOSYS और INFRASTRUCTURE। इन दोनों में N के बाद F है लेकिन फ़ो/फ़्रा से पहलेवाली इ पर बिंदी लगाने से इनके ग़लत उच्चारण निकल रहे हैं – इंफ़ोसिस (इम्फ़ोसिस) और इंफ़्रास्ट्रक्चर (इम्फ़्रास्ट्रक्चर) जबकि इनके सही उच्चारण है इन्फ़ोसिस और इन्फ़्रास्ट्रक्चर। इसलिए इन दो शब्दों में भी बिंदी न लगाएँ और आधे न का इस्तेमाल करें।

ऊपर मैंने जो पाँच ध्वनियों की बात की है जिनके पहले N आने पर आपको बिंदी नहीं लगानी है बल्कि आधे या पूरे न का इस्तेमाल करना है, उनको याद रखने के लिए आप बेवफ़ा प्रेमी की मदद ले सकते हैं। बे-व-फ़ा प्रे-मी में वे सारी ध्वनियाँ हैं – B, V, F/Ph, P और M जिनसे पहले N आए तो आपको अनुस्वार नहीं लगाना है। इस स्मृतिशब्द में र (R) की ध्वनि भी है जिसे इग्नोर कर सकते हैं क्योंकि R से पहले कभी N नहीं आता, R ही आता है। जैसे IRREVERSIBLE या IRREVOCABLE आदि। हाँ, कोई-कोई शब्द हो सकता है जैसे INROADS। वहाँ भी आपको बेवफ़ा प्रेमी के बाक़ी सदस्यों की तरह न ही लिखना है, बिंदी नहीं लगानी है।

लेक्चर अभी बाक़ी है…

कहते हैं, गाँधीजी सबको टोपी पहना गए लेकिन ख़ुद उन्होंने टोपी नहीं पहनी। इसी तरह ये पाँच अंतिम अक्षर ङ, ञ, ण, न और म अपने सगेवालों को अपनी ध्वनि के बदले बिंदी इस्तेमाल करने की अनुमति देते हैं लेकिन जब अपना मामला आता है तो बहुत ही सख़्त हो जाते हैं। जैसे एक शब्द लें सन्नाटा। इसे संनाटा लिखने में क्या बुराई है? आख़िर सं के बाद है जो तवर्ग का है जिसका पंचमाक्षर भी न है सो यहाँ बिंदी का उच्चारण आधा न या न् हो सकता है और वही हो भी रहा है। लेकिन नहीं, संनाटा लिखने की मनाही है। इसी तरह संमान में सं के बाद है जो पवर्ग का है जिसका पंचमाक्षर भी म है सो यहाँ बिंदी का उच्चारण आधा म या म् होगा और वही हो भी रहा है। लेकिन सम्मान को भी संमान लिखने की मनाही है। यह क्यों है, मुझे नहीं मालूम लेकिन है। सो याद रखिएगा – यदि कोई पंचमाक्षर कभी एकसाथ आए तो उनको उसी तरह लिखना है, बिंदी नहीं लगानी है। ऐसे कुछ और शब्द हैं – अन्न, अण्णा, कन्नड़, अम्मा, सम्मेलन, सन्निकट, अनन्नास और हाँ, वीरू की बसंती की धन्नो भी।

जाते-जाते आपको सावधान कर दूँ। ऊपर किसी व्यक्ति का मूल प्रदेश और भाषा जानने के लिए अंडा फेंकने का जो मैंने उदाहरण दिया, उसे कभी आज़माइएगा मत वरना अंडे के बदले डंडा पड़ने और गालियाँ सुनने की पूरी-पूरी संभावना है। मामला पुलिस तक भी जा सकता है और वहाँ मेरा नाम मत घसीट लीजिएगा कि दिल्ली के आलिम सर ने अपनी हिंदी क्लास में यह अंडे का आइडिया दिया था।

यह लंबी क्लास तो हो गई। अब अगर मैं पूछूँ कि सिंह का उच्चारण क्या होगा तो आपकी राय क्या होगी? सिम्ह, सिङ्ह, सिंघ या सिंग? आपकी जो भी राय है, वह सही है या ग़लत, यह जाँचने के लिए आप शब्द पहेली के तहत लिखी गई यह क्लास पढ़ सकते हैं।

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7 replies on “क्लास 5 – बसंती और बेवफ़ा प्रेमी से सीखें बिंदी का उच्चारण”

बहुत ही सरल और बहुत सरस तरीक़े से आपने एक मुश्किल टॉपिक को समझाया है , उसके लिए बहुत धन्यवाद ।

*(उससे भी आसान उपाय यह है कि ‘त’और ‘ट’ बोलें। त बोलते समय जीभ मुँह के जिस हिस्से को छूती है, वह तालू है और ट बोलते समय जीभ मुँह के जिस हिस्से को छूटी है, वह मूर्धा है।)
‘त’ वर्ग का उच्चारण स्थान तालू नहीं है , बल्कि ‘च’ वर्ग का है।

आपका कहना सही है कि चवर्ग और श का उच्चारण तालव्य है हालाँकि ‘त’ के उच्चारण में भी जीभ का अगला हिस्सा दाँत के साथ-साथ तालु को भी छूता है। तालु दरअसल वहीं से शुरू होता है जहां ‘त’ बोलते समय जीभ स्पर्श करती है। लेकिन हाँ, मूर्धन्य और तालव्य का अंतर दर्शाने के लिए ‘ट’ और ‘च’ का उदाहरण देना बेहतर है।

लेकिन ‘संन्यास’ में ‘न’ से पहले बिंदी लगाना मान्य है।

जी हाँ, संन्यास में न् से पहले बिंदी लगाई जा सकती है।

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