कुछ दिन पहले मेरे एक पूर्व सहकर्मी ने मुझसे प्रश्न किया – ऊब से ऊबाऊ होगा या उबाऊ? मैंने कहा – उबाऊ। उसका अगला प्रश्न था – उबाऊ क्यों? ऊब से तो ऊबाऊ ही होना चाहिए। यह एक बड़ा सवाल था और मुझे लगा कि इसपर चर्चा होनी चाहिए क्योंकि और भी कई लोग इस प्रश्न से जूझते होंगे कि ऊब से उबाऊ क्यों होता है, ऊबाऊ क्यों नहीं। आज की क्लास इसी विषय पर है। रुचि हो तो पढ़ें।
सही शब्द क्या है, यह तो मैंने इंट्रो में ही बता दिया है लेकिन उसी में जो दूसरा प्रश्न था कि उबाऊ क्यों सही है, उसका जवाब देना शेष है।
किसी किताब से इस प्रश्न का हल नहीं मिल सकता, न ही मिला। लेकिन ऐसे कई उदाहरण हैं जिनपर ग़ौर करने पर हम एक निष्कर्ष पर पहुँच सकते हैं। निष्कर्ष यह कि तीन या उससे अधिक वर्णों वाले शब्दों में यदि शुरुआती दोनों वर्ण भारी हों तो पहला आम तौर पर हलका हो जाता है। इसके कई उदाहरण हम देख सकते हैं।
लोहा से लुहार, न कि लोहार। सोना से सुनार, न कि सोनार। पीटना से पिटाई, न कि पीटाई। मीठा से मिठाई, न कि मीठाई। लूटना से लुटेरा, न कि लूटेरा।
ऐसा नहीं है कि इनकी यह वर्तनी किसी वैयाकरण ने तय की होगी। बहुत संभव है कि सोना से पहले सोनार ही बना होगा लेकिन मुखसुख (जीभ की सहूलियत) के चलते वह सुनार हो गया होगा। लोहा से लोहार और उससे लुहार भी इसी तरह बना होगा और ऊब से ऊबाऊ और उबाऊ भी।
इन शब्दों के आरंभिक दीर्घ स्वर का हृस्व में परिवर्तन (जैसे लो का लु, सो का सु) मुख्यतः बलाघात के कारण होता है। जो पाठक बलाघात के बारे में नहीं जानते होंगे, उन्हें बता दूँ कि शब्दों का उच्चारण करते समय हम हर स्वर (अक्षर) पर बराबर बल नहीं देते, कुछ पर कम और कुछ पर अधिक बल देते हैं। यदि किसी शब्द में दोनों स्वर दीर्घ हों या दोनों हृस्व हों तब भी बलाघात अलग-अलग होता है। जैसे राजा में ‘रा’ और ‘जा’ दोनों में दीर्घ स्वर हैं लेकिन ‘रा’ पर बलाघात अधिक है, ‘जा’ पर कम। इसी तरह महल में ‘म’ और ‘हल्’ दो अक्षर हैं मगर बलाघात ‘म’ पर अधिक है, ‘हल्’ पर कम।
लोहार और सोनार में भी ‘हा’ और ‘ना’ पर अधिक बलाघात था और शुरुआती ‘सो’ और ‘लो’ पर कम। इसलिए धीरे-धीरे ‘सो’ का ‘सु’ और ‘लो’ का ‘लु’ हो गया। सोनार बन गया सुनार और लोहार बन गया लुहार।
ऊब से भी पहले ऊबाऊ ही बना होगा लेकिन ऊपर बताई गई प्रक्रिया के चलते शुरुआती ऊ पर बलाघात कम रहा और वह ऊ से उ हो गया।
फूल+वाड़ी के फुलवाड़ी बनने के पीछे भी यही कारण है। देखने में तो फूल+वाड़ी में चार स्वर हैं (फू ल वा ड़ी> ऊ अ आ ई) मगर अक्षर (syllable) केवल तीन हैं – फूल्+वा+ड़ी क्योंकि ‘ल’ के ‘अ’ स्वर का उच्चारण नहीं होता। फूल+वाड़ी में भी बलाघात ‘वा’ पर पड़ रहा है, फूल् पर नहीं जिसकी वजह से ‘फूल्’ का उच्चारण ‘फुल्’ हो जा रहा है। फुलझड़ी में भी यही बात है।
अंग्रेज़ी में बलाघात को stress कहते हैं और वहाँ इसका बहुत ही अधिक महत्व है। मसलन A का उच्चारण Apply (अप्लाइ) में ‘अ’ और Application (ऐप्लिकेशन) में ‘ऐ’ हो रहा है, तो यह किसी अराजकता के कारण नहीं हो रहा है। यह शब्दों के अलग-अलग हिस्सों में पड़ने वाले बलाघात यानी stress के कारण हो रहा है।
अंग्रेज़ी में स्ट्रेस के सात नियम हैं और यदि कोई स्ट्रेस के सातों नियम जान ले तो उसके लिए अंग्रेज़ी शब्दों का उच्चारण समझना और करना बहुत ही आसान हो जाए।
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