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सत्य साईं था जादूगर, यह विडियो हमें बताता है

कुछ लोग शौक़िया जादूगर होते हैं जैसे मेरे मित्र प्रदीप जायसवाल और अनुराग अन्वेषी हैं। कुछ पेशेवर जादूगर होते हैं जैसे पी. सी. सरकार और ओ. पी. शर्मा। और कुछ धूर्त जादूगर होते हैं जैसे सत्य साईं बाबा और उनके जैसे ढेरों अन्य। पहले के ज़माने में पता नहीं चल पाता था इन धूर्त बाबाओं की बेईमानियों का। लेकिन आज विडियो और स्लोमोशन के ज़माने में साफ़ पता चल जाता है कि बाबा कैसे पब्लिक को उल्लू बना रहा है।

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तेरे ख़ुशबू में बसे ख़त मैं जलाता कैसे…

‘चौदहवीं का चाँद’, ‘संगम’, ‘एक बार मुस्कुरा दो’, ‘सागर’ और ‘चाँदनी’ जैसी ढेरों फ़िल्में हिंदी में बनी हैं जिनमें दो दोस्त एक ही लड़की से प्यार करते हैं। कहानी की ज़रूरत के अनुसार उन दोनों में से एक को अपने प्यार की और अक्सर अपनी जान की भी क़ुर्बानी देनी पड़ती है। सालों पहले मेरे साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ था हालाँकि हिंदी फ़िल्मों के उलट हम दो दोस्तों में से किसी को अपने प्राणों की आहुति नहीं देनी पड़ी थी। हमारे क़िस्से की नायिका भी दोनों में से किसी को नहीं मिली।

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ये चुटकुले क्यों किसी को उदास करते है?

कुछ चुटकुले बहुत ही मासूम होते हैं जैसे कोई टीचर कहे कि आज हम लव की बात करेंगे तो क्लास के किशोर छात्र-छात्राएँ समझें कि प्यार-मुहब्बत की बात होगी और पता चले कि राम और सीता के बेटे लव के बारे में पढ़ाया जाएगा। लेकिन अधिकतर चुटकुले इतने मासूम नहीं होते। वे हमेशा किसी के ख़िलाफ़ होते हैं – कभी किसी समुदाय के ख़िलाफ़, कभी किसी व्यक्ति की शारीरिक बनावट या कमियों के ख़िलाफ़। आज का ब्ल़ॉग चुटकुलों में छुपे इसी भेदभाव पर है। रुचि हो तो पढ़ें।

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समलैंगिकता अप्राकृतिक है तो शादी क्या है?

कुछ लोग समलैंगिकता का विरोध यह कहकर करते हैं कि यह अप्राकृतिक है? अगर ऐसा है तो क्या शादी प्राकृतिक है? किन पशु-पक्षियों में शादी होती है? कुछ और लोग इसको विदेशी प्रवृत्ति कहकर दुरदुराते हैं। ऐसे लोगों को सलाह है कि वे भारतीय मंदिरों में समलैंगिकता को दर्शाने वाली मूर्तियाँ देख लें। और हाँ, यह भी देख लें कि उनके अपने जीवन में कितनी चीज़ें हैं जिनका आविष्कार विदेश में हुआ है। टीवी, फ़्रिज, कार, टूथपेस्ट, और हाँ, यह मोबाइल या कंप्यूटर जिस पर यह लेख पढ़ रहे हैं… एक बार गिनना तो शुरू करें।

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पलटना वादे से अपने कब है धोखा, कब धोखा नहीं है?

बलात्कारी कई तरह के होते हैं। कुछ साफ़ नज़र आते हैं, कुछ भेस बदलकर आते हैं। जो साफ़ नज़र आते हैं, उनके लिए क़ानून में सज़ा का प्रावधान है। मगर जो भेस बदलकर आते हैं, उनके मामले में क़ानूनी स्थिति और अदालतों का नज़रिया अस्पष्ट है। जैसे उन लोगों के साथ क्या सलूक हो जो दूल्हे का चोला साथ लेकर आते हैं, शादी से पहले ही सुहागरात मनाते हैं और फिर वह चोला फेंककर कहीं चले जाते हैं। क्या वे भी बलात्कारी हैं? अगर हाँ तो कब और नहीं तो कब? आज इसी विषय पर चर्चा करेंगे। रुचि हो तो पढ़ें।

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