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258. ऋ का उच्चारण रि या रु, कृपा क्रिपा है या क्रुपा?

जिन शब्दों में ऋ होता है, उनके उच्चारण पर बहुत भ्रम है। जैसे गृह को कोई ग्रिह कहता है, कोई ग्रह और कोई ग्रुह। इसी तरह कृपा को भी तीनों तरह से बोला जाता है – क्रिपा, क्रपा या क्रुपा। आज की चर्चा इसी विषय पर है कि ऋ का सही उच्चारण क्या है।

जब इस विषय पर एक फ़ेसबुक पोल किया गया तो ज़्यादातर लोगों ने ‘रि’ के पक्ष में वोट किया। यानी कृपा का उच्चारण होगा क्रिपा। कुछ लोगों ने अपना मत देते हुए यह टिप्पणी भी की कि उत्तर भारत में क्रिपा बोला जाता है, पश्चिम भारत में क्रुपा। उन लोगों की बात भी आंशिक तौर पर सही है क्योंकि राजस्थान भी पश्चिम भारत में आता है लेकिन वहाँ कृपा को क्रुपा नहीं बोला जाता। वैसे मैंने उत्तर भारत में भी अच्छे-अच्छे लोगों को गृह मंत्री को ग्रह मंत्री बोलते सुना है। या तो वे इस शब्द की सही स्पेलिंग नहीं जानते या फिर गृह का उच्चारण नहीं जानते।

कहने का मतलब यह कि उत्तर भारत में किसी वर्ण के साथ लगे ृ का उच्चारण ‘रि’ और ‘र’ दोनों तरह से किया जाता है और पश्चिम भारत के दो राज्यों (महाराष्ट्र और गुजरात) में उसे ‘रु’ बोला जाता है।

लेकिन प्रश्न तो अब भी वहीं का वहीं रहा कि ‘ऋ’ का सही उच्चारण क्या है। क्या उत्तर भारत वाले सही उच्चारण करते हैं या पश्चिम भारत वाले?

इस प्रश्न का उत्तर देते हुए भाषावैज्ञानिक योगेंद्रनाथ मिश्र कहते हैं कि ‘संस्कृत में ‘ऋ’ का सही उच्चारण क्या था, आज की तारीख़ में यह किसी को नहीं मालूम। वैदिक काल में इसे क्या बोला जाता था, इसका भी कोई संदर्भ नहीं मिलता और इसीलिए हम केवल यह कह सकते हैं कि उत्तर भारत में इसका ‘रि’ उच्चारण होता है और पश्चिम भारत में ‘रु’। लेकिन इसका मूल उच्चारण क्या था, यह किसी को नहीं पता।’

यही बात अलग अंदाज़ में ‘शब्दों का सफ़र’ के रचयिता अजित वडनेरकर भी कहते हैं। उनके अनुसार ‘भारतीय भाषाओं में ‘ऋ’ का उच्चारण इकार-उकार दोनों ही प्रकार से होता है। महाराष्ट्र-गुजरात में यह साफ़-साफ़ पहचाना जा सकता है। इसके अलावा दक्षिणी क्षेत्रों में भी उकारवृत्ति है।’

प्रख्यात विद्वान डॉ रामविलास शर्मा को उद्धृत करते हुए वह कहते हैं कि ‘यह उकार पश्च स्वर था और गोलाकार नहीं था।’ गोलाकार नहीं था यानी बिल्कुल ‘उ’ की तरह नहीं था।

वडनेरकर जी कहते हैं कि किसी ज़माने में पश्चिमोत्तर क्षेत्रों में ‘ऋ’ के लिए उकारध्वनि ही रही होगी। वह इस सिलसिले में संस्कृत के ऋतु शब्द की मिसाल देते हैं जो फ़ारसी-उर्दू में रुत हो गया (देखें उनका कॉमेंट)।

ऋ का सही उच्चारण क्या है?

यानी वडनेरकर जी के अनुसार शुरुआत में ऋ की ध्वनि उकार (रु) ही रही होगी, न कि इकार (रि)। लेकिन उन्होंने अपनी दलील के पक्ष में जो मिसाल दी है, उसमें छेद है। वह कहते हैं कि ऋतु का उच्चारण रुतु था, तभी तो फ़ारसी में रूप रुत हुआ (रित नहीं)। लेकिन इसके उलट यह भी कहा जा सकता है कि विपर्यय (मात्रा या ध्वनि की अदला-बदली) के चलते ऋतु (रितु) का फ़ारसी में रुत हुआ है – ऋतु के ‘तु’ में लगी ‘उ’ की मात्रा ‘र’ पर आ लगी हो – रितु>रुत। वैसे ही जैसे अंगुली का उंगली या वबाल का बवाल हो गया है।

जब कहीं से कोई दिशा नहीं मिली तो मैंने संधि के नियमों के आधार पर जानने का प्रयास किया कि ‘ऋ’ का मूल उच्चारण क्या रहा होगा। इसके लिए मैंने ऋ की जगह रि, र और रु लिखा और देखा कि उस स्थिति में संधि का क्या परिणाम होता है। जैसे पितृ की जगह पित्रि, पित्र और पित्रु किया। देखिए, क्या परिणाम निकला।

1. यदि ऋ का उच्चारण रि होता तो संधि इस प्रकार की होती – पित्रि + अनुमति = पित्र्यन्मति। (यण संधि)

2. यदि ऋ का उच्चारण र होता तो संधि इस प्रकार की होती – पित्र + अनुमति = पित्रानुमति। (दीर्घ संधि)

3. यदि ऋ का उच्चारण रु होता तो संधि इस प्रकार की होती – पित्रु + अनुमति = पित्र्वनुमति। (यण संधि)

लेकिन जब पितृ+अनुमति की संधि होती है तो इन तीनों में से कोई परिणाम नहीं आता। पितृ+अनुमति के मिलने से होता है पित्रनुमति (पित्+र्+अनुमति) यानी ऋ बदल जाता है र् में।

देव+ऋषि में भी ऋ र् में ही बदलता है। हो जाता है देवर्षि (देव+र्+षि)।

दोनों ही उदाहरणों में ऋ का परिवर्तन र् में होता है। इससे यह तो कन्फ़र्म्ड है कि ऋ की ध्वनि में र् है। मगर उसके साथ लगी किसी मात्रा का कोई संकेत नहीं मिलता। हाँ, यह अवश्य पता चल जाता है कि वह मात्रा इ, अ या उ की नहीं है। यदि होती तो संधि का परिणाम कुछ और निकलता।

ऋ के उच्चारण पर और भी कई लोगों ने चर्चाएँ की हैं जो इंटरनेट पर मिलती हैं। ऐसी ही एक चर्चा में एक सज्जन ने अनुमान लगाया था कि ऋ का उच्चारण स्कूटर के शुरू होने पर होने वाली आवाज़ जैसा है – र्-र्-र्-र्-र्। 

एक और चर्चा में किसी ने श्रीपाद दामोदर सातवेलकर को उद्धृत करते हुए कहा है कि उनके अनुसार ऋ की ध्वनि धर्म में ‘ध’ और ‘म’ के बीच आने वाली ध्वनि है। इससे भी ऋ के र् उच्चारण की मान्यता को बल मिलता है।

हमने ऊपर जो संधि के उदाहरण देखे, उनसे तो ऐसा ही कुछ लगता है कि ऋ का मूल उच्चारण र् जैसा है।

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