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एकला चलो

उसने पूछा था – क्या मुझे सचमुच मरना ही पड़ेगा?

उन दिनों मैं संपादकीय पेज की चिट्ठियाँ छाँटा करता था जब मुझ वह चिट्ठी मिली। चिट्ठी लिखने वाली थी 22 साल की एक लड़की जिसके माता-पिता उसकी जबरन शादी किए दे रहे थे। वह इस शादी के ख़िलाफ़ थी क्योंकि वह शादी करके अपने बच्चे पैदा करने के बजाय अनाथ बच्चों की माँ बनना चाहती थी। उसने नवभारत टाइम्स के संपादक से मदद माँगते हुए अंत में लिखा था – आप ही बताइए, क्या इस लड़की को सचमुच मरना ही पड़ेगा क्योंकि आप इस पत्र को इतना महत्वपूर्ण नहीं समझते।

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