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हिंदी क्लास

क्लास 1 – झंडा का झंडे होता है तो नेता का नेते क्यों नहीं?

आपने देखा होगा कि ‘आ’ से अंत होनेवाले शब्दों के बाद कारक चिह्न जैसे ने, को, का, पर, से आदि आते हैं तो शब्द के अंत में लगा आ, में बदल जाता है। जैसे घोड़े पर सवार, रास्ते में मिला, झंडे का रंग आदि। लेकिन सीमा पर लड़ाई में सीमा सीमे नहीं होता। देवता की पूजा में देवते की पूजा नहीं होता। कब आ का ए होता है और कब नहीं होता, यही जानेंगे हम इस क्लास में।

आजतक टीवी चैनल पर सत्ता का सत्ते के रूप में प्रयोग

कुछ दिनों पहले ‘आजतक’ टीवी चैनल पर एक हेडलाइन देखी- ‘सत्ते के नशे में है बीजेपी– ओपी राजभर’। देखकर मैं चौंका कि सत्ता का नशा तो सुना था, सत्ते का नशा तो कभी नहीं सुना। आख़िर हेडलाइन लगानेवाले पत्रकार ने सत्ता को सत्ते क्या सोचकर किया होगा? तभी ख़्याल आया कि शायद उसको अमिताभ बच्चन की मशहूर फ़िल्म ‘सत्ते-पे-सत्ता’ का टाइटल याद रहा हो कि जब वहां ‘सत्ता’ का ‘सत्ते’ हो सकता है तो यहां क्यों नहीं। या फिर उसे ताश के पत्ते का रंग याद रहा हो और सोचा हो कि जब पत्ता का पत्ते हो सकता है तो सत्ता का सत्ते क्यों नहीं।

बात में दम है लेकिन यह भी सच है कि पत्ता का पत्ते होता है और ताश के पत्ते में जो सत्ता होता है, उसका भी सत्ते होता है लेकिन पावर के लिए जिस सत्ता शब्द का इस्तेमाल होता है, वहां सत्ता का सत्ते नहीं होता। ऐसा क्यों, इस सवाल का जवाब देने के लिए ही यह साइट शुरू की है ताकि हिंदी को लेकर कुछ युवा पत्रकारों, लेखकों और पाठकों में जो उलझनें हैं, उनको सुलझाने की कोशिश की जाए। इस पहली क्लास इसी सत्ते और पत्ते के सवाल पर है। यह एक ऐसा मामला है जहाँ गधे और घोड़े में कोई अंतर नहीं होता। दोनों पर एक ही नियम चलता है। दूसरे शब्दों में हम कारक चिह्नों के बारे में जानेंगे और यह भी कि इनके कारण कुछ आकारांत शब्दों पर क्या असर होता है। आकारांत यानी वे शब्द जो आ से ख़त्म होते हैं जैसे गधा, घोड़ा, रास्ता, सोफ़ा, सत्ता, पत्ता आदि।

आपमें से कई पाठक कारक चिह्नों के बारे में नहीं जानते होंगे जिन्हें कुछ लोग विभक्ति और परसर्ग भी कहते हैं। नहीं, मैंने ग़लत कहा – कारक चिह्नों को तो जानते होंगे लेकिन उनको कारक चिह्न या विभक्ति या परसर्ग कहा जाता है, यह नहीं जानते होंगे।

चलिए, मैं आज आपको सभी कारक चिह्नों से परिचित करवाता हूं और यह भी बताता हूं कि उनका महत्व क्या है। आगे कुछ शब्द देता हूं। इनको पढ़िए और अर्थ निकालिए। राम श्याम ठंडा पानी दिया। बताइए, इसका क्या अर्थ निकला। शब्दों से यह तो समझ में आ रहा है कि ठंडे पानी की बात हो रही है और राम और श्याम का भी इस ठंडे पानी से कुछ लेना-देना है। लेकिन क्या लेना-देना है, यह समझने के लिए हमें इनमें कारक चिह्न लगाने होंगे। हम इसमें दो कारक चिह्न लगाएंगे- ‘ने’ और ‘को’- ताकि बात समझ में आ जाए। यदि हम लिखते हैं कि ‘राम ने श्याम को ठंडा पानी दिया’ तो आँखों के सामने पूरा सीन आ जाता है कि राम नाम का एक व्यक्ति श्याम नाम के दूसरे व्यक्ति को ठंडा पानी दे रहा है। यदि हम उलटा कर देते कि ‘श्याम ने राम को ठंडा पानी दिया’ तो सीन बदल जाता है। अब श्याम है जो राम को ठंडा पानी दे रहा है। यानी ‘ने’ और ‘को’ के कारण ही सारा नज़ारा बदल जाता है। यहाँ ‘ने’ और ‘को’ कारक चिह्न हैं और ये कितने महत्वपूर्ण हैं, यह अब आपको पता चल गया होगा।

जी हाँ, किसी भी वाक्य का पूरा-पूरा अर्थ समझने के लिए कारक चिह्न बहुत ज़रूरी हैं। आपने ऊपर देखा कि जिस शब्द के साथ ‘ने’ लगा है, वही (पानी देने का) काम कर रहा है और जिसके साथ ‘को’ लगा है, उस पर उस काम का प्रभाव पड़ रहा है। व्याकरण की भाषा में जो काम करता है, उसे कर्ता और जिस पर किसी काम का असर पड़ता हो, वह कर्म होता है। ऊपर के पहले वाक्य में राम कर्ता है और श्याम कर्म तो दूसरे वाक्य में श्याम कर्ता है और राम कर्म।

ऊपर के इन वाक्यों के आधार पर हमने दो कारक तो समझ लिए- कर्ता और कर्म। दोनों के चिह्न भी समझ लिए- ‘ने’ और ‘को’। अब मैं इस वाक्य में एक और शब्द जोड़कर वाक्य में और जानकारी डालता हूं। राम ने श्याम को फ़्रिज का ठंडा पानी दिया। ‘फ़्रिज का’ जोड़ने से अब पाठक को और जानकारी मिलती है कि जो पानी दिया गया था, वह सामान्य ठंडा पानी नहीं, बल्कि फ़्रिज का था। यहाँ हमने एक और चिह्न देखा- ‘का’। किसका पानी? फ्रिज का पानी। यानी इस पानी का संबंध फ्रिज से है। इसीलिए इस कारक को संबंध कारक कहते हैं। लीजिए, आपने बातों ही बातों में तीसरा कारक और उसका चिह्न भी जान लिया। इस तरह के पाँच और कारक होते हैं। ऊपर बताए गए तीन के साथ-साथ इन सबके नाम और चिह्न नीचे दे रहा हूँ। आसान हैं, दो-तीन बार पढ़ेंगे तो याद हो जाएगा। नहीं भी याद हो तो कोई बात नहीं, आपको तो बस यह समझना है कि कारक चिह्न क्या-क्या होते हैं।

  • कर्ता                                     ने
  • कर्म                                     को
  • करण                                   से, के द्वारा, के साथ
  • संप्रदान                                को, के लिए
  • अपादान                               से
  • अधिकरण                            में, पर
  • संबंध                                   का, के, की
  • संबोधन                                हे, अरे

अब हम अपने काम की बात करते हैं कि इन कारक चिह्नों की वजह से एक ख़ास तरह के शब्दों पर क्या असर पड़ता है। इसे समझाने के लिए मैं ऊपर के वाक्य में कुछ परिवर्तन करता हूं। वाक्य है – ‘राम ने श्याम को घड़े का ठंडा पानी दिया।’ पहले वाक्य में ‘फ़्रिज’ था। इस वाक्य में ‘घड़ा’ है। क्या मैं सही कह रहा हूं? दूसरे वाक्य में क्या वाक़ई घड़ा है या घड़े है? फिर से देखिए- मैंने तो घड़े लिखा है, घड़ा नहीं। जी हां, मैं इसी परिवर्तन की बात कर रहा था। नियम यह कि यदि किसी वाक्य में आकारांत (यानी आ से अंत होनेवाले शब्द जैसे गधा, घड़ा, रास्ता आदि) शब्द हों और उनके बाद कोई कारक चिह्न आए तो उन शब्दों का ‘आ’ वाला हिस्सा ‘ए’ में बदल जाता है जैसे कि ऊपर घड़ा का घड़े हो गया। आपने कई लोगों को बोलते सुना होगा कि मुझे घड़ा का ठंडा पानी दे दो लेकिन यह अशुद्ध है। यहां होगा- मुझे घड़े का ठंडा पानी दे दो।

नीचे हम ऐसे ही पाँच आकारांत शब्दों के द्वारा इसे अच्छी तरह से समझ लेते हैं।

  • मैंने लिफ़ाफ़ा में चिट्ठी डालकर पोस्ट कर दिया।
  • मैंने लिफ़ाफ़े में चिट्ठी डालकर पोस्ट कर दिया।
  • उसने रास्ता पर गिरा नोट उठा लिया।
  • उसने रास्ते पर गिरा नोट उठा लिया।
  • राधेश्याम ने कहा कि हम गया ज़िला के रहनेवाले हैं।
  • राधेश्याम ने कहा कि हम गया ज़िले के रहनेवाले हैं।
  • उसने रोते हुए कहा, मेरे बीमार बच्चा के लिए कुछ पैसे दे दो।
  • उसने रोते हुए कहा, मेरे बीमार बच्चे के लिए कुछ पैसे दे दो।
  • कुछ लोग मानते हैं, अमिताभ दवा से हीं, दुआ से ठीक हुए।

और अब यह पाँचवाँ वाक्य-

  • कुछ लोग मानते हैं कि अमिताभ दवा से नहीं, दु से ठीक हुए।
  • कुछ लोग मानते हैं कि अमिताभ दवे से नहीं, दु से ठीक हुए।

अरे, आप ऐसे क्यों देख रहे हैं जैसे मैंने कुछ ग़लत लिख दिया हो? क्या कहा- दवे नहीं होगा? और दुए भी नहीं होगा? लेकिन नियम तो यही कहता है कि आकारांत शब्दों के बाद कारक चिह्न आएगा तो आ का ए हो जाएगा। दवा और दुआ दोनों आकारांत शब्द हैं और दोनों के बाद कारक चिह्न ‘से’ आ रहा है तो नियम के अनुसार तो दवे और दुए होना ही चाहिए। सही पकड़े हैं। यहाँ दवा का दवे और दुआ का दुए नहीं होगा। क्यों नहीं होगा? फ़ॉर्म्युला बिल्कुल आसान है। यह नियम केवल पुल्लिंग शब्दों में लगता है और दवा और दुआ दोनों स्त्रीलिंग हैं।

तो पूरा नियम यह होगा कि यदि किसी वाक्य में पुल्लिंग आकारांत (यानी आ से अंत होनेवाले शब्द जैसे गधा, घड़ा, रास्ता आदि) शब्द हों और उनके बाद कोई कारक चिह्न आए तो उन शब्दों का ‘आ’ वाला हिस्सा ‘ए’ में बदल जाता है जैसा कि ऊपर घड़ा का घड़े हो गया। अब यह नियम जानकर आप आसानी से पता कर लेंगे कि किस आकारांत शब्द का आ ए में बदलेगा और किसका नहीं।

उदाहरण के लिए एक ही अर्थ वाले दो शब्द लेते हैं- इरादा और मंशा। इरादा पुल्लिंग है और मंशा स्त्रीलिंग (उसका इरादा, उसकी मंशा)। तो यदि हम इरादा का वाक्य में इस्तेमाल करेंगे तो यूँ लिखेंगे – वह पैसा कमाने के इरादे से (इरादा से नहीं) चुनाव में खड़ा हुआ था। अब इसी वाक्य में इरादा को मंशा में बदल देंगे तो लिखेंगे- वह पैसा कमाने की मंशा से (मंशे से नहीं) चुनाव में खड़ा हुआ था।

अब दो अलग-अलग अर्थवाले समान शब्द का मामला लेते हैं। जैसे सत्ता जिसका ज़िक्र सबसे ऊपर आया है। सात की संख्यावाला पत्ता यानी सत्ता जो ताश के खेल में इस्तेमाल होता है, वह पुल्लिंग है (मुझे लाल पान का सत्ता मिला है) लेकिन पावर के लिए जिस सत्ता का व्यवहार होता है, वह स्त्रीलिंग है (मोदी को 2014 में केंद्र की सत्ता मिली)। यह वही सत्ता है जिसकी बात यूपी के मंत्री ओपी राजभर बात कर रहे थे, इसलिए वहाँ सत्ता का सत्ते नहीं होगा। इसी तरह ‘मेरे मामा ने मुझे घड़ी गिफ़्ट की’ सही नहीं है। सही है कि ‘मेरे मामे ने मुझे घड़ी गिफ़्ट की।’

लो, आप फिर से मुझे अविश्वसनीय नज़रों से देख रहे हैं। भई, मामा तो पुल्लिंग है और आकारांत भी है, और जैसा कि हमने ऊपर पढ़ा, नियम के मुताबिक़ पुल्लिंग आकारांत शब्दों के साथ कारक चिह्न लगता है तो ‘आ’ का ‘ए’ हो जाता है। फिर यहाँ ‘ने’ कारक चिह्न लगने के बावजूद मामा का मामे क्यों नहीं होना चाहिए? जी हाँ, ये अपवाद हैं – चाचा, मामा, देवता, नेता आदि। और इन अपवादों को याद रखने के दो फ़ॉर्म्युले हैं।

पहला फ़ॉर्म्युला यह कि तत्सम शब्दों में और रिश्तावाचक शब्दों में यह नियम नहीं चलता। इसलिए देवता, नेता, राजा आदि देवते, नेते और राजे नहीं होंगे। इसी तरह पिता, चाचा, नाना, दादा आदि भी पिते, चाचे, नाने, दादे नहीं होंगे।

अगर आपको तत्सम-तद्भव आदि समझ में नहीं आता तो आपके लिए फ़ॉर्म्युला नंबर दो है। वह यह कि जिन पुल्लिंग आकारांत शब्दों का बहुवचन बनाने पर उनका ‘आ’, ‘ए’ में नहीं बदलता, उनमें यह नियम नहीं चलेगा और जिनका बहुवचन बनाने पर ‘आ’ का ‘ए’ हो जाता है, उनमें यह नियम चलेगा। इसे परखने के लिए इन शब्दों के आगे एक और दो लगाएँ।

  1. एक गधा, दो गधे। एक घड़ा, दो घड़े। इनमें कारक चिह्न का नियम चलेगा और ये आकारांत से एकारांत में बदलेंगे।
  2. एक मामा, दो मामा (न कि दो मामे)। एक देवता, दो देवता (न कि देवते)। इनमें यह नियम नहीं चलेगा आर इनके बाद कारक चिह्न आने पर भी ये आकारांत से एकारांत नहीं होंगे।

चलते-चलते एक आख़िरी बात। हमने ऊपर जिन शब्दों का ज़िक़्र किया, उनमें कोई भी प्रॉपर नाउन यानी व्यक्तिवाचक संज्ञा नहीं है। वह इसलिए कि नामों के मामले में यह नियम नहीं चलता। लेकिन एक समय था जब पटना और कलकत्ता को लोग पटने और कलकत्ते बोलते और लिखते थे। जैसे ‘मैं कल ही तो पटने से आया हूँ’ या ‘कलकत्ते में चीज़ें बड़ी सस्ती मिलती हैं।’ बीते ज़माने की हास्य अभिनेत्री टुनटुन जिन्होंने उमादेवी के नाम से गीत भी गाए हैं (अफ़साना लिख रही हूँ, दिल-ए-बेक़रार का… उन्हीं का गाया अमर गीत है), जब पटना जाती थीं तो यह गाना गाती थीं – मैं काहे गई थी पटने, मेरा वज़न लगा है घटने। अब यह प्रचलन समाप्त हो गया है।

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2 replies on “क्लास 1 – झंडा का झंडे होता है तो नेता का नेते क्यों नहीं?”

सर आपकी कक्षा से बहुत कुछ नया सीखने को मिला।
ऐसे कई उदाहरण मैंने भी देखे हैं, जहां नामों के अंत में आने वाले ‘आ’ को ‘ए’ से बदल दिया गया। जैसे- काली कलकत्ते वाली, आगरे का मशहूर पेठा।

Maja aa gaya. Bahut samay se aise hi prashno ke uttar ke liye koi website dundh raha tha.

Waise log abhi bhi “Aagre ka Petha” kehte hain.

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